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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०१ उ०५ सू०२ (२४)दण्डकेषु स्थितिस्थाननिरूपणम् ७४७ __ छाया-संग्रहः-पृथिवीषु स्थितिः अवगाहना शरीर संहननमेव संस्थानम् , लेश्या दृष्टिनिं योगोपयोगश्च दश स्थानानि ॥१॥ एतस्याः भदन्त रत्नप्रभायाः पृथिव्यास्त्रिंशति निरयावासशतसहस्रेषु एकैकस्मिन् निरयावासे नैरयिकाणां कियन्ति स्थितिस्थानानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम ! असंख्येयानि स्थितिस्थानानि प्रज्ञसानि, तद्यथा-जघन्यिका स्थितिः१, समयाधिका जघन्यिका स्थितिः२, द्विसम स्थितिस्थाननिरूपण _ 'संगहो-पुढवि-टिइ-ओगाहण' इत्यादि । मूलार्थ-(संगहो) द्वारसंग्रह गाथा द्वारा दिखाया जाता है (पुढवीट्ठिति ओगाहण) पृथीव्यादि जीवावासों में स्थिति १ अवगाहनास्थान २ (सरीर संघयणमेव संठाणे) शरीर३, संहनन४, संस्थान ५, (लेस्सा दिट्ठी णाणे जोगुवओगे य दस द्वाणा) लेश्या६, दृष्टि ७, ज्ञान ८, योग ९, और उपयोग, १० ये दस स्थितिस्थान हैं । स्थितिस्थानका निरूपण करते हुए गौतमस्वामी पूछते है कि-(इमीसे णं भंते !) हे भदन्त ! इस (रयणप्पभाए पुढवीए) रत्नप्रभा पृथिवी में (तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु) तीस लाख नरकावासों में (एगमेंगंसि) एक एक (निरयावासंसि) नरकावास में अर्थात् प्रत्येक नरकावास में (नेरइयाणं) नारक जीवों के ( केवइया ठिटाणा पन्नत्ता ?) कितने स्थितिस्थान कहे गये हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं । (गोयमा ! असंखेजा ठिइट्टाणा पन्नत्ता) हे गौतम ! नारक जीवोंके स्थितिस्थान असंख्यात कहे गये है। (तं जहा) स्थितिस्थाननि३५" संगहो पुढवि-ट्ठिइ-ओगाहण" त्यादि । भूसाथ-संगहो द्वा२ सय गाथा 43 नायनी मत मतावामा सावे छे. पुढवि द्विति ओगाहण पृथिव्या पासोमा स्थिति १ २११॥डना स्थान. २ सरीरसंघयणमेव संठाणे शरी२ 3 सहनन ४ सस्थान ५ लेस्सादिद्रीणाणे जोगुवओगे य दसटाणा वेश्या , दृष्टि से, ज्ञान ८, यो ८ मने ७५ ૧૦, એ દસ સ્થિતિસ્થાન છે. સ્થિતિસ્થાનોનું નિરૂપણ કરતાં ગૌતમસ્વામી પૂછે छे -इमीसे णं भंते ! भगवन् ! रयणप्पभाए पुढवीए २त्नप्रभा पृथिवीमा तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु तीसमा न२४ावासमा एगमेगंसि मे से निरयावासंसि न२४वासमा अर्थात् प्रत्ये २४वासमा नेरइयाणं ना२४ वाना केवइया ठिइटाणा पन्नत्ता 28i स्थितिस्थान ४i छ ? 24 प्रश्न उत्तर मापत प्रभु छ गोयमा ! असंखेज्जा लिइद्राणा पन्नत्ता 3 गीतम! ना२४ वान स्थितिस्थान मस ज्यात खi छ, त जहा ते मा शत छ. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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