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________________ ફર भगवती सूत्रे 64 35 66 कर्म च तत्र खलु यत्तत् प्रदेशकर्म तन्नियमेन वेदयति, तत्र यत्तदनुभागकर्म तद् अस्त्येककं वेदयति, अस्त्येककं नो वेदयति, ज्ञातमेतदर्द्दता स्मृतमेतदर्हता विज्ञातमेतदर्हता - इदं कर्मायं जीवः आभ्युपगमिक्या वेदनया वेदयिष्यति, इदं कर्मायं जीव औपक्रमिक्या वेदनया वेदयिष्यति, यथा कर्म यथा निकरणं यथा यथा तद् भगवता दृष्टं तथा तथा तत् विपरिणस्यति इति, तत् तेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते खलु मए गोयमा ! दुविहे कम्मे पन्नत्ते " हे गौतम मैंने दो प्रकार का कर्म कहा है तं जहा " वह इस प्रकार है " पएसकम्मे य अणुभागकम्मे य एक प्रदेश कर्म और दूसरा अनुभाग कर्म तत्थ णं जं तं पएसकम्मं तं नियमा वेएइ " जो प्रदेश कर्म है जीव उसे नियमसे वेदन करता है "तणं जंतं अणुभागकम्मं तं अत्थेगइयं वेएर अत्थेगइयं णो वेएइ " उसमें जो अनुभागकर्म है उसमें से जीव कितनेक को वेदता है और कितनेक को नहीं भी वेदता है "गायमेयं अरह या सुयमेयं अरहया, विन्नायमेयं अरहया" वक्ष्यमाण कर्म वेदन के ये दो प्रकार अर्हतप्रभुने जाने हैं, उन्होंने इन्हे स्मरण जैसा किया है। उन्होंने ही विविधरूप से जाते हैं कि- "इमं कम्मं अयं जीवे अग्भुवगमियाए बेघणाए वेयइस्सइ," यह जीव इस कर्मको आभ्युपगमिक वेदनाद्वारा वेदन करेगा "इमं कम्मं, अयं जीवे उवक्कमिया वेणा वेयइस्सइ " इस कर्म को यह जीव औपक्रमिक वेदना द्वारा वेदन करेगा "अहाकम्मं, अहानिगरणं जहा जहा तं भग या दिता तहा तं विप्परिणमिस्सर त्ति" यथाकर्म- बंध किये हुए कर्म के अनुसार एवं निकरणों के अनुसार जैसा जैसा वह कर्म भगवानने हे गौतम ! से उर्भ मे अारना मताव्या छे " तं जहा " ते या प्रमाणे छे"पएसकम् य अणुभागकम्मे य ” मे प्रदेश भने जी अनुलागर्भ 66 66 तत्थ णं जं तं पएसकम्मं तं नियमा वेएइ " तेमां ने प्रदेशम्भ छे तेनुं व નિયમથી વેદન કરે છે. तत्थ णं जं तं अणुभागकम्मं त अत्थेग़इयं वेएइ अत्थेगइयं णो वेएइ" तेमां ने अनुलागउर्भ छे तेमांथी व डेटाउनुं वेहन अरे छे, भने डेंटलाउनु वेहन उरतो नथी. "णायमेयं अरया सुयमेयं अरहया विन्नायमेयं अरहया” वक्ष्यमाणु अभ वेहनना मे अार भईत प्रभु भएया छे. तेथे तेनुं स्मरण धुं युं छे. तेयोमे तेने विशेष रूपथी भएया छे. "इम्मं कम्म अयं जीवे अब्भुवगमियाए वेयणाए वेयइस्सइ " आ व मा भने आल्युपगभिङ वेहना वडे वेहन १२शे. “इमं कम्मं अयं जीवे उवक्कमियाए वेयणाए वेयइस्सइ" ते आउने मा व सौप भिङ वेहना द्वारा वेहन उरशे " अहाकम्मं अहा निगरणं जहा जहा तं भगवया दिट्ठ तहा तहा विपरिणमिस्सइत्ति " यथाभ - धायेस उभ પ્રમાણે અને નિકરણ પ્રમાણે જેવું જેવું કમ ભગવાને દેખ્યું છે તેવી તેવી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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