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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. १ उ. १ सू० १ 'विआहपन्नत्ती'-शब्दस्य छायाः ३७ जीवादिपदार्थनिरूपणा इत्यर्थः, ताः पदार्थनिरूपणाः प्रज्ञाप्यन्ते प्रकर्षण बोध्यन्ते यस्यां सा व्याख्याप्रज्ञप्तिरिति प्रथमो भेदः१। __ व्याख्याप्रज्ञाप्तिरिति-व्याख्या च प्रज्ञा चे ति व्याख्याप्रज्ञे, तयोराप्तिः प्ररूपणा-प्रज्ञति है। तात्पर्य यह है कि जिसमें विविध प्रकार से समस्त जीवाऽजीवादि पदार्थविषयक कथनरूप प्ररूपणा अभिविधिपूर्वक या मर्यादापूर्वक प्रकट की जाती है उसका नाम व्याख्या है। यहाँ " आङ्' मर्यादा या अभिविधि अर्थमें प्रयुक्त हुआ है। यही बात "समन्तात्" पदसे प्रकट की गई है। मर्यादा शब्दका अर्थ यहां "परस्पर असंकीर्णविशाल-लक्षणकथनपूर्वक " ऐसा है। तथा अभिविधि शब्दका अर्थ "समस्त ज्ञेय पदार्थोंकी व्यातिपूर्वक " ऐसा है। तात्पर्य कहनेका यह है कि ये जो जीवाजीवादिविषयक प्ररूपणाएँ की गई हैं वे परस्पर असंकीर्ण-विशाल-लक्षणकथनपूर्वक की गई हैं। अथवा जो ये प्ररूप णाएँ की गई हैं वे ऐसी नहीं हैं कि कुछेक ज्ञेयपदार्थों में ही व्यास होंपरन्तु समस्त ज्ञेय पदार्था में व्याप्त हैं, इस प्रकारकी इन जीवाजीवादिविषयक प्ररूपणाओंका निरूपण जिसमें संशय विपर्यय और अनध्यवसायादि दोष रहित किया गया है उसका नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है । इसका निष्कर्षार्थ यही है कि भगवान्ने गौतम आदि शिष्य जनोंके प्रति जीवाजीवादिक पदार्थों का कथन उनके पूछे हुए प्रश्नोंके अनुसार जो मर्यादा પ્રરૂપણ છે તેને ભાવાર્થ આ પ્રમાણે છે-જેમાં વિવિધ પ્રકારના સમસ્ત જીવ અજીવ આદિ પ્રદાર્થવિષયક કથનરૂપ પ્રરૂપણ અભિવિધિપૂર્વક અથવા મર્યાદા पूर्व प्रगट ४२वामा मावे छ तेतुं नाम व्याज्या छ. मी "आ" माह अलिविधिना म मा १५रायेा छ. मे पात "समन्तात्' ५४थी प्रगट ४२ . "भयो।” शहन मथ मी " ५२२५२ २मसी - वि - सक्षथन पूर" थाय छे. तथा “मलिविधि" मेटले “ समस्त ज्ञेय पदार्थानी व्याति पूर" કહેવાનો ભાવાર્થ એ છે કે – આ જે જીવાજીવાદિવિષયક પ્રરૂપણાઓ કરવામાં આવી છે તે પરસ્પર અસંકીર્ણ – વિશાળ – લક્ષણકથનપૂર્વક કરવામાં આવી છે. અથવા આજે પ્રરૂપણ કરી છે તે એવી નથી કે જે કઈ કઈ ગેય પદાર્થોમાં જ વ્યાપ્ત હોય, પણ તે સમસ્ત સેય પદાર્થોમાં વ્યાપ્ત છે. આ પ્રકારની જીવાજીવાદિ. વિષયક પ્રરૂપણુઓનું નિરૂપણ જે શાસ્ત્રમાં સંશય, વિપર્યય અને અનધ્યવસાય माह होप २डित ४२वामा माव्युं छेते शस्त्रनुं नाम "व्याख्याप्रप्ति" छे. तेनुं તાત્પર્ય એ છે કે ભગવાન મહાવીરસ્વામીએ ગૌતમ આદિ શિષ્યની સમક્ષ જીવ, અજીવ આદિ પદાર્થોનું કથન તેમણે પૂછેલા પ્રશ્નો પ્રમાણે જે મર્યાદા કે શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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