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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. १ उ० २ सू० ५ पृथिवीकायिकादिजीवनिरूपणम्" ४३९ दृष्टयस्तेषां नैयतिक्यः पञ्च क्रियाः क्रियन्ते तद्यथा-आरम्भिकी यावन्मिथ्यादर्शनप्रत्यया तत्तेनार्थेनं, समायुष्काः समोपपन्नकाः यथा नैरयिकास्तथा भणितव्याः। यथा पृथिवीकायिकास्तथा यावत् चतुरिन्द्रियाः॥मू०५॥ टीका-'पुढवीकाइयाणं' पृथिवीकायिकानाम् ‘आहारकम्मवन्नलेस्सा' आहारकर्मवर्णलेश्याः 'जहा नेरइयाणं' यथा नैरयिकाणां तथा वाच्याः। आहार कर्मवर्णलेश्याप्रतिपादकानि चत्वारि मूत्राणि नैरयिकसूत्रवत् पृथिवीकायिकाभिलापृथिवीकायिक मायावी और मिथ्यादृष्टि हैं। (ताणं णियझ्याओ पंच किरियाओ कज्जति) इसलिये उनमें पांच क्रियाएँ नियमपूर्वक होती हैं। (तं जहा) वे क्रियाएँ ये हैं-(आरंभिया जाव मिच्छादंसणवत्तिया) आरं. भिकी यावत् मिथ्यादर्शन प्रत्यया (से तेणट्टेणं०) इसलिये हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूं कि समस्त पृथिवीकायिक एक सरीखी क्रियावाले हैं। (समाउया समोववण्णा जहा नेरइया तहा भाणियव्वा ) जिस प्रकारसे समायुष्क, समोपपन्नक नारकजीव कहे हैं उसी प्रकारसे पृथिवीकायिक जीवोंको भी जानना चाहिये । (जहा पुढवीकाइया तहा जाव चउरिदिया) जैसे पृथिवीकायिक जीवोंके विषयमें कथन किया गया है वैसा ही कथन दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय यावत् तीन चार इन्द्रिय जीवोंके विषयमें भी जाननाचाहिये ॥ सू०५॥ टीकार्थ--"पुढवीकाइयाणं आहारकम्मवन्नलेस्सा जहा नेरइयाणं" पृथिवीकायिक संबंधी आहार, कर्म, वर्ण और लेश्याके प्रतिपादक चार ( पुढविकाइया सव्वे माई मिच्छट्ठिी) समस्त पृथ्वीय पो भयावी भने भिथ्याट छ. ( ताणं णियइयाओ पंचकिरियाओ कजति ) तेथी तो पाय छियास नियमपूर्व ४२ छे. (तंजहा) ते यासा सा प्रमाणे छ-(आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया) सानिधी याथी सन भिथ्याशन प्रत्यया सुधीनी पांय छियास।. (से तेणटेणं) गीतम! ते १२ मे ४ छु. समस्त पृथ्वीय वो मे सभी जियावा हाय छे. ( समाउया समोववण्णा जहा नेरइया तहा भणियव्वा ) समायुष्ता भने सभा५५न्नताना विषयमा नानी सेभ पृथ्वीयामा ५Y समन्यु. (जहा पुढविकाइया तहा जाव चउरिंदिया) પૃથ્વીકાય જીવોના વિષયમાં આ જે કથન થયું છે તે કથન દ્વીન્દ્રિય, તેઈન્દ્રિય અને ચતુરિન્દ્રિય જીવોના વિષયમાં પણ થયેલું સમજવું. टी -“ पुढवीकाइयाणं आहारकम्मवन्नलेस्सा जहा नेरइयाणं " ना२કેના આહાર, કર્મ, વર્ણ અને લેસ્યા સંબંધી જે ચાર સૂત્ર છે તે સૂત્ર પ્રમાણે જ પૃથ્વીકાયના આહાર, કર્મ, વર્ણ અને લેસ્થાનું પ્રતિપાદન કરનારા શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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