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________________ ३५६ भगवतीसूत्रे मात्मानं परिक्लेशयन्ति, आत्मानं परिक्लेश्य कालमा सेकालं कृत्वाऽन्यतरेषु वानव्यन्तरेषु देवलोकेषु देवतयोपपत्तारो भवति । तत्तेनार्थेन गौतम । एवमुच्यते जीवः खलु असंयतः यावत् इतश्च्युतः प्रेत्य अस्त्येकको देवः स्यात् अस्त्येकको नो देवः स्यात् ।। सू० २९ ॥ तृष्णाद्वारा, अकाम क्षुधाद्वारा, अकाम ब्रह्मचर्यवासद्वारा (अकामसीतातव समसग अकाम अव्हाणग - सेयजल्लमलपक परिदाहेणं) अकामशीत, आतप, डंस मच्छर से उद्भूत हुए दुःखों को सहन करनेद्वारा, अकाम अस्नान, स्वेद, जल्ल, मैल तथा पंक से होते हुए परिदाहद्वारा ( अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति ) थोडे काल तक अथवा अधिक कालतक अपने आपको क्लेशित करते हैं (परिकिलेसित्ता) और क्लेशित कर के ( कालमासे कालं किच्चा) मृत्यु के समय मरते हैं तो ऐसी स्थिति में वे ( अनयरेसु वाणमंतरेसु देवलोगेसु देवताए - उबवत्तारो भवंति ) वानव्यन्तर देवलोकोमेंसे किसी भी देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होते हैं ) ( से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - जीवे णं- असंजए जाव इओ चुओ पेच्चा अत्थेगइए देवेसिया अस्थेगइए नो - देवेसिया ) इस कारण से हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूं कि असंघत जीव यावत् यहां से च्युत हो कर मर कर कोई एक देव होते हैं और कोई एक देव नहीं होते हैं । ક્ષુધા દ્વારા, અકામ ब्रह्मयर्यावास द्वारा ( अकामसी तातवदंसमसग अकाम अव्हाण - सेयजल मल पंक परिदाहेणं) अाभ शीत, भात, भय्छरोना उस द्वारा उलवेस हुने सहन अश्वा द्वारा, अशुभ स्नान, स्वेह, दल, भेल, तथा पहुं वडे उद्दूलवता ष्ट द्वारा, ( अप्पतरो वा भुज्जतरो वा कालं अप्पाणं परिकिलेसंति ) थोडा आज सुधी हे सांगा आज सुधी पोतानी लतने परिडिलेशित ४२ छे. (परिकिले सित्ता ) भने उबेशित उरीने ( कालमासे कालं किच्चा ) ले मृत्यु प्राप्त उरे छे तो तेवा वो भरीने ( अन्नयरेसु वाणमंतरेसु देक्लोगेसु देवन्ताए उबवत्तारो भवंति ) वानव्य तर देवलो अभांना अ पशु यसो मां देव३ये उत्पन्न थाय छे. ( से तेण द्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जीवे णं असंजए जाव इओचुओ पेच्चा अत्येगइए देव सिया अत्येगइए नो देवसिया ) ते रखे हे गौतम! हुड्डु छुडे, डेटलाई असंयत व ( यावत् ) अडींनुं आयुष्य ३ थतां ભરીને દેવ થાય છે તેા કેટલાક અસયત જીવ દેવ થતા પણ નથી. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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