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________________ २६२ भगवतीसूत्रे कतिभागं स्पर्शयन्ति, गौतम ! असंख्येयभागमाहरन्ति, अनन्तभागं स्पृशन्ति यावत्-तेषां पुद्गलाः कीदृशतया भूयो भूयः परिणमंति, गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय विमात्रतया भूयोभूयः परिणमन्ति शेषं यथा नैरयिकाणाम् यावन्नो अचलितं कर्म परन्तु नारक जीवोंकी अपेक्षा आहार के विषयमें जो इनके आहारमें (णाणत्त) भेद है वह इस प्रकारसे है—(कहभागं आहारेति, कहभाग फासाइंति) हे भदंत ! पृथिवीकायिक जीव कितने भागका आहार करते हैं और कितने भागका स्पर्श करते हैं ? (गोयमा! असंखिज्जभागं आहारेंति अणंतभागं फासाइंति जाव ) हे गौतम ! पृथिवीकायिकजीव असंख्यातभागका आहार करते हैं और अनंतवें भागका स्पर्श करते हैं यावत्-(तेसि पोग्गलाकीसत्ताए भुज्जो २ परिणमंति?) उनके द्वारा आहारके विषयभूत बने हुए पुद्गल किस आकारसे बार २ परिणमते हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (फासिदिय वेमायत्ताए भुज्जो २ परिणमंति) वे पुद्गल स्पर्शन इन्द्रियकी विविधतामें बार २ परिणमते रहते हैं। (सेसं जहा नेरइयाणं, जाव नो अचलियं कम्मं निज्जरेंति, एवं जाव वणस्सइ काइयाणं, नवरं ठिई वण्णेयव्वा जाजस्स, उस्सासो वेमायाए) बाकी सब नरकोंकी तरह जानना चाहिये। कहांतक ? यावत् अचलित कर्मकी निर्जरा वे नहीं करते हैं यहां तक, इस तरह अप्कायिक, तेजाकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक तक जानना चाहिये। विशेषता यह समन. ५५५ ना२४ ७वाना माहा२ ४२त तमना माहाभा २ (णाणत्तं ) मेह छ ते मा प्रमाणे छे. (कइ भागं आहारेति, कइ भागं फासाइंति ?) હે ભદન્ત ! પૃથિવીકાયિક જીવો કેટલા ભાગનો આહાર કરે છે અને કેટલા मागन। २५श ४२ छ ? ( गोयमा । असं खिज्जभाग आहारेति अणंत भाग फासाइंति जाव) गौतम ! पृथ्वीयि वो मस-यात भागन। माहार रेछ भने सनतम भागने। २५श ४२ छ. (तेसिं पागला कोसत्ताए भुज्जो २ परिणमंनि ? ) 3 महन्त ! तेमना द्वारा मा२ना विषयभूत मनेसा पास च्या मारे पार पा२ पशिशुभे छ ? ( गोयमा ।) ॐ गौतम ! (फासिंदिय घेमायताए भुज्जो २ परिणमति ) ते पुस २५शन धन्द्रियनी विविधतामा पार पा२ परिशुभता २९ छे. ( सेसं जहा नेरइयाण, जाव नो अचलिय कम्म निज्जरे ति, एवं जाव वणसइकाइयाण, नवरं ठिई वण्णेयव्या जाजस्स उस्सासो वेमायाए ) जीन पधु नानी सभा समनयां सुधी ? “ते। અચલિત કર્મની નિર્જરા કરતા નથી” ત્યાં સુધી. એ જ પ્રમાણે અકાયિક, તેજ કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિ કાયિક સુધીના વિષયમાં સમજવું. તેમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧
SR No.006315
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages879
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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