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________________ ९५० समवायाङ्गसूत्रे द्वादशेऽच्युते जघन्यत एक विंशतिसागरापमाण उत्कृष्टतो द्वाविंशति सागरापमाणि च स्थितिः । तथा नवसु ग्रैवेयकेषु प्रथमग्रैवेयके देवानां जघन्यतो द्वाविंशति सागरोपमाणि उत्कृष्टतस्त्रयोविंशतिसागरोपमाणि, द्वितीये जघन्यतस्त्रयोविंशति सागरोपमाणि उत्कृष्टतश्चतुर्विंशतिसागरोपमाणि, तृतीये जघन्यतश्चतुर्विंशतिसा. गरोपमाणि उत्कृष्टतः पञ्चविशतिसागरोपमाणि, चतुथ जघन्यतः पञ्चविंशतिसगिरोपमाणि उत्कृष्टतः पइविंशतिसागरोपमाणि पञ्चमे जघन्यतः षडविंशतसागरोपमाणि उत्कृष्टतः सप्तविंशतिसागरोपमाणि, षष्ठे जघन्यतः सप्तविंशति. सागरोपमाणि उत्कृष्टतोऽष्टाविंशतिसागरोपमाणि, सप्तमे जघन्यतोऽष्टाविंशति सागरोपमाणि उत्कृष्टत एकोनत्रिंशत्सागरोपमाणि, अष्टमे जघन्यत एकोनत्रिंशबीस २० सागरोपम की है। बारहवें अच्युत कल्प में देवों को उत्कृष्ट स्थिति बावीस २२ सागरोपमकी है और जघन्यस्थिति इक्कीस सागरोपम की है । तथा नव ग्रैबेयकों में से प्रथम ग्रेवेयक में देवोंकी जघन्यस्थिति वावीस २२ सागरोपमकी है और उत्कृष्टस्थिति तेवीस २३ सागरो. पम की है। द्वितीय अवेयक में देवों की जघन्य स्थिति तेवीस २३ सागरोपम की है और उत्कृष्टस्थिति चौवीस २४ सागरोपमकी है । तृतीय ग्रैवेयक में देवों की जघन्यस्थिति चौबीस २४ सागरोपम की है और उत्कृष्टस्थिति पच्चीस २५ सागरोपम की है। चतुर्थ ग्रैवेयक में देवों की जघन्यस्थिति पच्चीस २५ सागरोपम की है और उत्कृष्टस्थिति छवीस २६ सागरोपम की है। पांचवें अवेयक में देवों की जघन्यस्थिति छवीस २६ सागरोपम की हैं और उत्कृष्टस्थिति सत्ताईस २७ सागरोपम की है। छठवे अवेयक में देवों की जघन्यस्थिति सत्ताईस २७ सागरोपम की है और उत्कृष्टस्थिति अठाईस २८ सागरोपम की है। सातवें ग्रैवेयक में देवो की जघन्यस्थिति अठाईस सागरोपम की है और उत्कृष्टस्थिति उगन्तीस (उन्तीस) सागरोपम की है। आठवें अवेयक में देवां की जघन्यस्थिति સ્થિતિ ૨૦ વીસ સાગરોપમની છે. બારમાં અચુત ક૯૫માં દેવે ની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૨૨ બાવીસ સાગરોપમની અને જઘન્યસ્થિતિ ૨૧ એકવીસ સાગરોપમની છે. તથા નવ પ્રવેચકોમાંના પહેલા વેયકમાં દેવોની જઘન્યસ્થિતિ પર બાવીસ સાગરોપમની છે અને ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ ૨૩ તેવીસ સાગરોપમની છે. બીજા વેયકમાં દેવની જઘન્ય સ્થિતિ ૨૩ તેવીસ સાગરોપમની છે અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ ૨૪ ચોવીસ સાગરોપમની એ જ પ્રમાણે ત્રીજા, ચોથા, પાચમાં, છઠ્ઠા, સાતમા, આઠમાં, અને નવમાં પ્રવેયકમાં દેવેની જઘન્ય સ્થિતિ અનુક્રમે ૨૪, ૨૫, ૨૬, ૨૭, ૨૮, ૨૯ અને ૩૦ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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