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समवायाङ्गसूत्रे
तथा 'अरया' अरजांसि स्वाभाविकरजोरहितानि, 'नीरया' नीरजांसि-आगन्तुक रजोरहितानि तथा 'णिम्मला' निर्मलानि-मलरहितत्वात. 'वितिमिरा' विति. मिराणि-कृत्रिमान्धकाररहितत्वात, 'विसुद्धा' विशुद्धानि=स्वाभाविकान्धकाराभावात्, तथा 'सव्वरयणामया' सर्वरत्नमयानि-कर्केतनादिरत्ननिर्मितानि. तथा 'अच्छा' अच्छानि-आकाशवत् स्फटिकवच्च स्वच्छानि 'सहा' श्लक्ष्णानि= चिकणानि 'घट्ठा' घष्ठानि-खरशाणया घर्षितानि, तथा ‘मट्ठा' मृष्टानि सुकुमारशाण या संशोधितानि, तथा 'गिप्पंका' निष्पङ्काणि पङ्करहितानि, तथा 'णिककडच्छाया' निष्कङ्कटच्छायानिनिष्कङ्कटा-निरावरणा निरुपघाता छाया-कान्ति येषां तानि तथोक्तानि, उपघातवर्जितकान्तिसहितानि, तथा 'सप्पभा' सप्रमाणि 'समरीया' समरीचीनि ‘स उज्जोया' सोद्योतानि 'पासाईया' प्रासादीयानि 'दरिसणिज्जा' दर्शनीयानि 'अभिरुवा' अभिरूपाणि तथा 'पडिरूवा' प्रतिरूपाणि । एषामर्थः पूर्ववब्दोध्यः । प्रत्येकस्मिन् कल्पे कियन्तः कियन्तो विमानावासा; रज से रहित हैं। आगन्तुक ऊपर की धूलि से वर्जित हैं। निर्मल हैं। विति मिर-कृत्रिम अंधकार से विशद्ध-स्वाभाविक अंधकार से ये सब रहित हैं। ये विमान ककेतनादि रत्नमय हैं। आकाश एवं स्फटिक की तरह ये निर्मल हैं। श्लक्ष्ण-चिकने हैं। घृष्ट-खुरशाण से घिसे हुए जैसे चमकते हैं, मृष्ट-बडे कोमल सुवाले हैं। प्रमाण में एक जैसे हैं नीचे ऊंचे हिस्सेवाले नहीं हैं। निष्पंक-कीचड रहित हैं। इनकी कांति आवरण या उपघात से रहित हैं। अर्थात् उपघात वर्जित कान्तिवाले ये हैं। सप्रभा-प्रभासहित हैं, समरीच-किरण सहित हैं, सोद्योत-प्रकाशसहित हैं। प्रासादीय हैं दर्शनीय, हैं, अभिरूप ह प्रतिरूप हैं, इन पदों का अर्थ पहिले सूत्रों के व्याख्यान में कर दिया है सो वैसा ही यहां जान लेना चाहिये। કાન્તિ સમાન છે. તેઓ સામાન્ય રજથી રહિત છે. ઉડીને આવતી રજથી પણ રહિત છે, નિર્મળ છે, વિતિમિર-કત્રિમ અંધકારથી રહિત છે અને સ્વાભાવિક અંધકારથી પણ રહિત છે. તે વિમાને કેતન આદિ રત્નથી શોભી રહ્યાં છે, माश भने २५८४ समान नि छ. लक्षण-भुलायम-सुवाणi छ. घष्टખરસાણના પથ્થર વડે ઘસ્યાં હોય એવાં ચળકતાં છે, પૃg-ઘણું કમળ અને સંવાળાં છે. પ્રમાણમાં એક સરખાં છે, ઊંચા નીચા ભાગવાળાં નથી. નિષ્પકश्रीया २डित छे. याव२९५ है ५ात २डित अन्तिा छ सप्रभा-प्रभायुत छ, समरीच-8२।थी यु४त छ, सोद्योत-शत छ. प्रास हीय छ, ४शनीय छ, અભિરૂપ છે, અને પ્રતિરૂપ છે. આ પદોના અર્થ આગળના સૂત્રોના વ્યાખ્યાનમાં આવી ગયા છે તો ત્યાંથી જોઈ લેવા.
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર