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________________ भावबोधिनी टीका. असुरकुमाराद्यावासनिरूपणम् ९२१ नगर ध्वजाओं से युक्त रहते है। "सुरम्य हैं, पासादीय है, दर्शनीय हैं अभिरूप हैं, प्रतिरूप हैं इन पदों का अर्थ पहिणे लिखा जा चुका है। (केवइयाणं भंते! जीइसियाण विमाणावासा पण्णत्ता) कियन्तः खलु भदन्त ! ज्योतिषिकाणां विमानावासाः प्रज्ञप्ता:-हे भदन्त ! ज्योतिषी देवों के विमानावास कितने कहे गये हैं? उत्तर (गोयमा!) हे गौतम ! (इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए) अस्या:खलु रत्नप्रभायाः पृथिव्याः-इस रत्नप्रभापृथिवी के (बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ) बहुसमरणणीयात् भूमिभागात-बहुसमरमणीय भूमिभाग से (सत्तनउयाइं जोयणसयाई उर्दू उपपडत्ता) नवत्यधिक योजनशतानि ऊर्ध्व उत्पत्य-सात सौ नब्बे योजन पर जाकर (एत्थ णं) अत्र खलु (दसुत्तर जोयणसय बाहल्ले) दशोत्तर योजन शतवाहल्ये-एक सौ दस योजन के बाहुल्य से युक्त (तिरिर्य जोइसविसए) तिर्यग ज्योतिषविषये-ज्यौतिषदेव-सबंधी तीरछे प्रदेश में जोइसियाणं देवाणं) ज्योतिषिकाणां देवानां-ज्योतिष देवों के (असंखेजा जोइसिय विमाणावासा पण्णत्ता) असंख्याता ज्योतिषि विमानावासाः प्रज्ञप्ता:-असख्यात ज्योतिषिकविमानावास कहे गये हैं । (ते णं जोइसियविमाणाकुलानि) ते व्यतना नगरे। नमोथी भुत राय छे. ते मना ५५ 'सरन्य પ્રાસાદીય, દશનીય, અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ હોય છે. આ પદોના અર્થ આગળ આપી દીધા છે (केवइयाण भते जोइसियाणं विमाणावासा पण्णत्ता ?) भदन्त ! कियन्तः खलु ज्योतिषिकाणां विमानावासाः प्रज्ञप्ताः ?-3 महन्त ! ज्योतिषी वाना विभान पास ३८॥ छ ? उत्तर-(गोयमा !) हे गौतम ! ( इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए) अस्याः खलु रत्नमभायाः पृथिव्याः- रत्नप्रमा पृथ्वीना (बहुसरमणिजाओ भूमिभागाओ) वहुसमरमणीयात् भूमिभागातपाई सभरमणीय भूमिमाया (सत्तनउयाइं जीयणसयाई उ उप्पइत्ता) नवत्यधिकयोजन शतानि ऊर्च उत्पत्य-सातसे नव योन 6५२ तi (पत्थ) अत्र खलु-रे क्षेत्रे मा छ तेभा ( दसुत्तरजोयणसयबाहल्ले ) दशोत्तरयोजनशतवाहल्ये-मे से। इस यानी यानी (तिरियं जोइसक्सिए) तिर्यग ज्योतिषविषये-ज्योतिषवाना ति२७६ प्रदेशमा (जोइसियाणं देवाणं) ज्योतिषिकाणां देवानां-योतिषी हेवोना (असंखेजा जोइसियविमाणावासा पण्णत्ता) असंख्याता ज्योतिषिविमानावासाः पज्ञप्ताः-मसभ्यात ज्योतिषि विभानापास भावेसा छे. (ते णं जोइसियविमाणावासा) ते खलु ज्योतिषिक શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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