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भावबोधिनी टीका. असरकुमाराद्यावासनिरूपणम् रूवा-प्रतिरूपाणि) प्रतिरूप है-कारण जितने भी जन इन्हें देखते हैं उन सब के लिये ये रमणीय प्रतीत होते हैं। (एवं) एवम् उक्त प्रकार से (ज जस्स- यत् यस्य) जिस प्रकार (कमए-क्रमते) असुरकुमार के आवासों का यहां प्रमाण कहा है (तं तस्य-तत्तस्य) उसी प्रकार से नागकुमार आदि निकाय के भवनादिकों का (तह चेव वण्णओ) तथैव वर्णकः-सो इनका वर्णन भी असुरकुमारों के आवासो जैसा ही जानना चाहिये ।
(केवइयाणं भंते ! पुढविकाइयावासा पण्णत्ता-कियन्तः खलु भदन्त! पृथिवीकायिकाबासाः प्रज्ञप्ताः) हे भदंत! पृथ्वीकाय के निवास स्थान कितने प्रकार के हैं ? (गोयमां! असंखेज्जा पुढविकाइयावासा पणत्ता-गौतम! असंख्याताः पृथ्वीकायिका वासा प्रज्ञप्ताः) हे गौतम ! पृथ्वीकायिकों के आवास असंख्यात कहे हुए हैं। (एवं जाव मणुस्सत्ति-एवं यावत् मनुष्य इति) यावत् शब्द से अप, तेजो, वायु और प्रत्येक वनस्पति के असंख्यात स्थान हैं तथा साधारण वनस्पति के अनंत स्थान हैं।
केवइयाणं भंते ! वाणमनरावासा पण्णत्ता-कियन्तः खलु भदन्त ! वाणमन्तरावासाः प्रज्ञप्ताः-हे भदंत ! व्यंतर देवों के आवास कितने हैं? उत्तर-(इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए-अस्याः खलु रत्नप्रभायाः पृथिव्याः) इसरत्न प्रभा पृयिवी का जो (रयणामयस्स कंडम्स-रत्नमयकाण्डस्य) रत्नरूपाणि) प्रति३५ छ-४३४ ना२ने ते २मय लागे छ. (एवं) प|४त प्रारे (जंजस्स-यत् यस्य) रेभ (कमए-क्रमते) मसु२४मा२नां मावासानु 47 वन यु छ. (तं तस्स) मे ४ प्रमाणे नागभार माहितिनi लनानि (तहचेव वण्णाओ-तथैव वर्णकः) वन ५५ सुरेभाना सपना समायु
(केवइयाणं भंते ! पुढवीकाइयावासो पणत्ता-कियन्तः खलु भदन्त ! पृथिवीकायिकावासाः प्रज्ञप्ताः ?) & महन्त ! पृथ्वीयन निवासस्थान सा ४२ना छे ? (गोयमा ! असंखेजा पुढविकाइयावासा पण्णत्ता)- गौतम ! पृथ्वीजयोना मावास असण्यात सा छे. (एवं जाव मणुस्सत्ति-एवं यावत् मनुष्य इति) ५५, तेच, वायु, मने प्रत्ये वनस्पतिमा मसभ्यात स्थान छे. અને સાધારણ વનસ્પતિનાં અનંત સ્થાન છે.
__ (केवइयाणं भंते वाणमंतरावासा पण्णत्ता-कियन्तः खलु भदन्त ! वाणमन्तरावासाः प्रज्ञप्ताः?) 3 महन्त ! व्यत२ वाना मावास या छ ? उत्तर-(इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए-अस्याः खलु रत्नप्रभायाः पृथिव्याः) PAL २नमा पृथ्वीना (रयणामयस्स कंडस्स-रत्नमयकाण्डस्य)त्नमयisछे
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર