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समवायानसूत्रे
विपाकश्रुत में (आघविज्जति) आख्यायन्त-कहे हैं। प्रथम श्रुतस्कध में अशुभकर्मों का और द्वितीय श्रुतस्कंध में शुभकर्मों का विपाक सूत्रकार ने कहा है। (अन्ने वि एवमाइया, बहुविहावित्थरेणं अत्थपरूवणा आघविजंति) अन्येऽपि एवमादिका बहुविधा विस्तरेण अर्थप्ररूपणा आख्यायन्ते-इसी प्रकार के और भी दूसरे विविध प्रकार के विषय इस विपाकस्त्र में विस्तार के साथ कहे गये हैं। (विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा) विपाकश्रुतस्य खलु परीताः वाचना:-इस विपाकश्रुत की वाचनाएँ संख्यात हैं। (संखेज्जा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-अनु. योगद्वार संख्यात हैं। (जाव संखेजाओ संगहणीओ) यावत्संख्येयाः संग्रहण्यः-यावत् संग्रहणियां संख्यात हैं। (से गं अंगठ्ठयाए एकारसमे अंगे) स खलु अङ्गार्थतया एकादशमङ्गम्--अंग की अपेक्षा यह ग्यारहवां अंग है। (वीसं अज्झयणा) विंशतिरध्ययनानि-इसमें बीस अध्ययन हैं। (वीसं उद्देसणकाला) विंशतिरुदेशनकालाः-बीस उद्देशनकाल हैं । (वीसं समुद्देसणकाला) विंशतिःसमुद्देशनकालाः-बीस ही समुद्देशनकाल हैं। (संखेजाइं पयसयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ताई) संख्येयानि पदशतसहस्राणि पदाग्रेण प्रज्ञप्तानि-पदपरिमाण की अपेक्षा इसमें संख्यात हजार अर्थात् एक करोड चौरासी लाख बत्तीस हजार पद हैं। तथा आपविजंति) आख्यायन्ते-४थन 3थु छे. ५९सा श्रुतम अशुल भनि भने जी श्रुत२४ मां शुभ भनी विपा सूत्ररे मताव्य। छ. (अन्ने बि एवमाइया बहुविहावित्थरेणं अत्थपरूवणा आघविजंति) अन्येऽपि एवमादिकाबहुविधा विस्तरेण अर्थप्ररूपणा आख्यायन्ते-मा ४२ना भीan ५९y અનેક વિવિધ પ્રકારના વિષયનું આ વિપાકસૂત્રમાં વિસ્તારપૂર્વક કથન કર્યું છે. (विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा) विपाकश्रुतस्य खलु परीताः वाचनाःमा विपातनी संध्यात वायनाम छे, (संखेजा अणुओगदारा) संख्येयानि अनुयोगद्वाराणि-सण्यात अनुयागवार छे, (जाव संखेज्जाओ संगहणीओ) यावत संख्येयाः संग्रहण्यः-से रीते 'सध्यात सहजीमा छ' त्यां सुधीन। पह! सम सेवा. (से णं अंगट्टयाए एक्कारसमे अंगे) स खलु अङ्गार्थतया एकादशमङ्गम्-भगोनी अपेक्षा ते मनियारभु म छ. (वीसं अज्झयणा) विंशतिरध्ययनानि-तेमा वीस मध्ययने। छ, (वीस उद्देसणकाला) विंशतिरुद्देशनकालाः-वीस देशना छ, भने (वीसं ससुद्देसणकाला) वास समुद्देशन छे (संखेज्जाइं पयसयसहस्साइं पयग्गेणं पण्णत्ताइ) संख्येयानि पदशतसहस्राणि पदाग्रेण प्रज्ञप्तानि-तमा सज्यात २- ४२।योर्यासी साम मत्रीस १२
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર