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________________ भावबोधिनी टीका. दशमास्वरूपनिरूपणम् ७९९ हुए प्रश्नों का अर्थात् मन के भीतर चिन्तित किये गये प्रश्नों का जो विद्याएँ उत्तर देती है वे मनः प्रश्नविद्याएँ हैं। इन दोनों प्रकार की विद्याओं में देवता सहायक होते हैं (सब्भूयदुगुणप्पभावनरगणमविम्हयकराण) सद्भूतद्विगुणप्रभावनरगणमतिविस्मयकराणाम्-साधक के साथ इन देवताओं का विविध अर्थ-प्रयोजन को लेकर परस्पर में संवाद होता है सो यह मुख्य गुण जिन प्रश्नों में प्रकाशित होता है ऐसे प्रश्नों के, तथाजो प्रश्न लब्धि विशेष से उत्पन्न हुए अपने अतिशय प्रभाव से मनुष्यों की मति को आश्चर्य में डाल देते हैं ऐसे प्रश्नों के (अइसयमई य कालसमय--दमसमतित्थकरुत्तमस्स ) अतिशयातीतकालसमयदमशम तीर्थकरोत्तमस्य अतिशयातीतकालसमय में--अनंतपूर्वकालवर्तीकाल में-शमदम शाली उत्तम-अन्य शास्ताओं की अपेक्षा-सर्वोत्कृष्ट -जिन भगवान् की सत्तास्थापन करने में कारणभूत हैं-अर्थात् जिनके विना अतीत काल में यदि जिन भगवान न हुए होते तो ऐसे प्रश्नों की उपपत्ति ही नहीं बन सकती (ठिइकरणकारणाणं) स्थिति करणकारणानाम्-इस तरह अन्यथानुपपत्ति से अतीतकाल में जो जिन भगवान की सत्ता के ख्यापक हैं ऐसे प्रश्नों के, (दुरहिगमदुरवगाहस्स) दुरधिगमदुरवगाहस्य-तथा दुरधिगम-सूक्ष्म अर्थ वाला होने से बहुत ही कठिनाई से समझने योग्य-और दुरवगाह-सूत्र बहुल होने के कारण થયેલા પ્રશ્નના ઉત્તર દેનારી વિદ્યાને મન પ્રશ્નવિદ્યા કહે છે. તે બન્ને પ્રકારની विधायम हे सहाय४ थाय छे. ( सब्भूयदुगुणप्पभावनरगणमइ-विम्हयकराणं ) सद्भूतद्विगुण प्रभावनरगणमतिविस्मयकराणाम्-~-सानी साथे તે દેવતાઓને વિવિધ હેતુથી સંવાદ થાય છે. આ મુખ્ય ગુણ જે પ્રશ્નોમાં પ્રકાશિત થાય છે એવા પ્રશ્નોનું. તથા લબ્ધિ વિશેષથી પ્રાપ્ત પિતાના અતિશના પ્રભાવથી २ प्रश्न भासने श्चिय यति ४N ना छे सेवा प्रश्नानु-( अइसयमईयकालसमयदमसमतित्थकरुत्तमस्स ) अतिशयातीतकाल-समयदमशम तीर्थकरोत्तमस्य-तथा प्रश्न मनत४७ पूर्व शमशाणी उत्तम-मने मन्य શાસ્ત્રોની અપેક્ષાએ સર્વોત્કૃષ્ટ-જિન ભગવાનની સત્તા સ્થાપવામાં કારણભૂત છે. એટલે કે જિન ભગવાન થયા ન હોય તો જે પ્રશ્નોની ઉત્પત્તિ જ શકય ન હતી, (ठिइकरणकारणाणं) स्थिति करणकारणानाम्-माशते मन्यथानुपपत्तिथी मतीत કાળમાં પણ જિન ભગવાનની સત્તાનું જે પ્રતિપાદન કરે છે એવા પ્રશ્નોનું, (दुरहिगमदुरवगाहस्स) दुरधिगमदुरवगाहस्य-तथा सूक्ष्म अवाणु साथी भडा भुश्तीथी समालय मे मने दुरवगाह-सूत्र पर पाथी पानी भु२४. શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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