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भावबोधिनी टीका. दशमाङस्वरूपनिरूपणम्
अब सूत्रकार प्रश्नव्याकरण नामके दशवें अग का स्वरूप कहते हैं
शब्दार्थ-(से कि तं पण्हावागरणाइ) अथ कानि तानि प्रश्नव्याक रणानि-हे भदत ! प्रश्नव्याकरण सूत्र का स्वरूप क्या है ? उतर-(पण्हा वागरणेसु णं)प्रश्नव्याकरणेषु खलु प्रश्नव्याकरणसूत्र में (अत्तरं पसिणसयं) अष्टोत्तर प्रश्नशतम्-एक सौ आठ प्रश्न, (अत्तरं अपसिणसयं) अष्टोत्तरमप्रश्नशतम्-एक सौ आठ अप्रश्न, (अत्तरं पसिणापसिणसयं) अष्टोत्तरं प्रश्नाप्रश्नशतम-एक सौ आठ ही प्रश्नाप्रश्न हैं, इनका कथन इस अंग में हुआ है। तथा (विजाइसया) विद्यातिशयाः-स्तंभन, वशीकरण, विद्वेषण, उच्चाटन आदि रूप जो विद्यातिशय है उनका, (नागसुवन्नेहिं) नागसुपण:नागकुमार, सुपर्णकुमार तथा यक्ष आदिको के (सदि) सार्द्ध-साथ जो (दिव्वाः ) वास्तविक (संवाया) संवादा:-बातचीत होती है व हुई है वह (आघविज्जति) आख्यायन्ते-सब विषय इसमें कहा गया है। (पण्हावागरणेसुणं) प्रश्नव्याकरणेषु खलु-प्रश्नव्याकरणसूत्र में (ससमयपरसमयपण्णवयपत्ते अबुद्धविविहत्थभासाभासियाणं ) स्वसमयपरसमयप्रज्ञापकप्रत्येकबुद्धविविधार्थभाषाभाषितानां-स्वसिद्धान्त और परसिद्धान्त के प्रज्ञापक जो प्रत्येक बुद्ध हैं, उन प्रत्येक बुद्धों ने विविध अर्थवाली भाषाओं द्वारा
હવે સૂત્રકાર પ્રશ્નવ્યાકરણ નામના દસમા અંગનું સ્વરૂપ બતાવે છે–
शहाथ-(से कि तं पण्हावागरणाई) अथ कानि तानि प्रश्नव्याकरणानि-हे सहन्त ! प्रश्नव्या४२५नु स्१३५ छ ? उत्तर-(पण्हावागरणेसु ण) प्रश्नव्याकरणेषु खलु-प्रश्न०या४२९५ सूत्रमा (अछुत्तरं पसिणसयं) अष्टोत्तरं प्रश्नशतम्-४ से। 213 प्रश्नी, (अत्तरं अपसिणसयं) अष्टोत्तरमप्रश्नशतम्मे से 2418 24प्रश्ना, (अछुत्तरं पसिणापसिणसय) अष्टोत्तरं प्रश्नाप्रश्नशतम्मने पेसे। 2418 प्रश्नानानु ४५न थयु छ, तथा (विजाइसया) विद्यातिशयाः- २त मन, शी२९], विद्वेष, स्याटन मा ४२नारे विद्यातिशय छ तेमनु, (नागसुवन्नेहिं) नागसुपर्णैः- नामा२, सुपाणुमार तथा यस माहिनी (सद्धि) सार्द्ध- साथै २ (दिव्याः) दिव्या:-पास्तपि४ (संवाया) संवादा:संपा। थया छ थाय छे तेनु (आपविजंति) आख्यायन्ते-मा मामा १ न थ छे. (पण्हावागरणेसु णं) प्रश्नव्याकरणेषु खलु-प्रश्नव्या४२४सूत्रमा ( ससमयपरसमयपण्णवयपत्ते अबुद्धविविहत्थभासाभासियाणं) स्वसमय परसमयप्रज्ञापकप्रत्येकबुद्धविविधार्थभाषाभाषितानाम--स्वसिद्धांत भने ५२સિદ્ધાંતના પ્રજ્ઞાપક પ્રત્યેક બુદ્ધ વિવિધ અર્થવાળી ભાષાઓ દ્વારા જે પ્રશ્નોનું
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર