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________________ भावबोधिनी टीका. अष्टमाङ्ग स्वरूपनिरूपणम् यह अन्तकृतदशा अंग की अपेक्षा आठवां अंग है। एगे सुयक्खंधे) एक: श्रुतस्कन्धः - इसमें एक श्रुतस्कध हैं (दसअज्झयणा) दशाध्ययनानि - प्रथम वर्ग की अपेक्षा दश अध्ययन हैं। (अट्ठ वग्गा) अष्ट वर्गा :- आठ वर्ग हैं (दश उद्देसणकाला ) दस उद्देशनकाला : - दश उद्देशन काल हैं (दस समु देसणकाला) दश समुद्देशनकाल हैं। यह कथन भी प्रथमवर्ग की अपेक्षा कहा गया जानना चाहिये । ( संखेज्जाई पय सहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ता) संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण प्रज्ञप्तानि पदपरिमाण की अपेक्षा इसमें तेवीस लाख चालीस हजार पद हैं। (संखेजा - अक्खरा) संरूयेयानि अक्षराणिसंख्यात अक्षर हैं। (जाव एवं चरणकरण - परूवणा) यावत् एवं चरणकरण प्ररूपणाः, यहां यावत् शब्द से 'अनंता गमा, अनंता पज्जवा, परित्ता तसा, अनंता थावरा' अनंत पर्याये, असंख्यात त्रस, अनंत स्थावर ये सब पदार्थ जिन भगवान ने कहे हैं और ये सब शाश्वत - नित्य, कृत- अनित्य, निबद्ध एवं निकचित हैं इस अंग मे कहे गये हैं, प्रज्ञापित हुए है । प्ररूपित हुए हैं । दर्शित हुए हैं, निदर्शित हुए हैं, और उपदर्शित हुए हैं। इन समस्त क्रियापदों का अर्थ आचारांग के स्वरूप का निरूपण करते समय लिख दिया गया है। जो इस अंग का अच्छी तरह से अध्ययन अट्टमे अंगे) सा खलु अंगार्थया अष्टममङ्गम् - अ ंजनी अपेक्षा या 'यातह de211' 216y' viɔl d. (çî gaïàù) ça; Yathra:-dui As gazs'u d, (दस अज्झयणा) दश अध्ययनानि-प्रथम वर्गनी अपेक्षाये इस अध्ययन छे, [अवरगा] अष्टवर्गाः- वर्ग छे, [दस उद्दे सणकाला ] दशउद्देशन कालाः६ उद्देशनमा छे, (दससमुद्दे सणकाला) दश समुद्देशन काला-हस समुद्देशन अण छ, ख। ऽथन थए, पहेला वर्गानी अपेक्षा उरवामां आव्युं छे. (संखेजाइं पयसहस्साई पयग्गेणं पण्णत्ता) संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण प्रज्ञप्तानि - तेमां होनु प्रमाण तेवीस लाभ यालीस हन्भरनु छे. (संखेज्जा अक्खरा ) संख्ये. यानि अक्षराणि संख्यात अक्षरो छे. (जाव एवं चरणकरणपरूवणा) यावत् एवं चरणकरण प्ररूपणाः - अही 'यावत्' म्हथी 'अनंत गम छे, अनंत पर्याय। છે, સખ્યાત ત્રસ છે, અનત સ્થાવરો છે, એ બધા પદાર્થા જિનભગવાન દ્વારા उथित छे. थे अषां शाश्वत - नित्य, कृत- अनित्य, निमद्ध भने निहायत छे, आ અંગમાં તેમનું કથન થયું છે, પ્રજ્ઞાપિત થયા છે, પ્રરૂપિત થયા છે, દર્શિત થયા છે, નિર્દેશિ`ત થયા છે, અને ઉપદર્શિત થયા છે, આ બધાં ક્રિયાપદોના અર્થ આચારાંગનું સ્વરૂપનિરૂપણ કરતી વખતે આપી દીઘા છે. જે માણસ આ અંગનુ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર - ७७७
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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