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समवायाङ्गसूत्रे
का व्याख्या किया जाता है। (उवासगदसासु णं) उपासकदशासु खलुइस उपासकदशा में (उवासयाणं) उपासकानां-श्रावकों के (रिद्धिविसेसा) ऋद्धिविशेषाः-हयगजादिरूप तथा हिरण्य सुवर्ण आदि ऋद्धिविशेष.(परिसा) परीषद्-मातपिता आदि आभ्यन्तर सभा का तथा दासी, मित्र आदि रूप बाह्यपरिषद् का, (वित्थरधम्मसवणाणि) विस्तरधर्मश्रवणानि-भगवान् महावीर के समीप विस्तारपूर्वकश्रुतचारित्ररूप धर्म का श्रवण करना, (बोहिलाभा) बोधिलाभाः-जिनधर्म की प्राप्तिरूप बोधिलाभ, (अभिगमा)
अभिगमाः-सअसद् विवेकरूप अभिगम, (सम्मत्तविसुद्धया) सम्यक्तवविशुद्धता-सम्यत्तव की विशुद्धता, (थिरत्तं) स्थिरत्वं स्थिरता, (मूलगुण उत्तरगुणाइयारा) मूलगुणोत्तरगुणातिचारा:-श्रावक के मूलगुण और उत्तरगुणों के अतिचार, (ठिईविसेसा यास्थितिविशेषाश्च-श्रावकपर्यायरूपस्थितिविशेषा,(बहुविसेसा)बहुविशेषाः-और भी अनेक प्रकार, (पडिमाभिग्गहग्गहणापालणा) प्रतिमाभिग्रहग्रहणपालनानि-सम्यग्दर्शन आदि प्रतिमाएँ तथा प्रत्याख्यानविशेषरूप अभिग्रह का लेना और उसका पालन करना (उवसग्गाहियासणा) उपसर्गादिसहनानि-देवादिकृत उपद्रवों का सहना, ( णिरूवसग्गा य ) निरूपसर्गाश्व--उपसर्गका अभाव ये सब विषय वर्णित हुए हैं। तथा (तवा य विचित्ता) तपांसि विचित्राणि-अनशशासु खलु-मा अासाम (उवासयाणं) उपासकानां-श्रावना (रिद्धिविसेसा) ऋद्धिविशेषाः-हाथी, घोडमाहि३५ तथा २९य सुपण मा दि विशेषानु, (परिसा) परीषद्-भातपिता मा माल्य-त२ समानु तथा सा, सी, भित्र माह माह परिष नु, (वित्थरधम्मसवणाणि) विस्तरधर्मश्रवणानिसपान महावीरनी सभी विस्तारपूर्व श्रुतयारित्र३५ ५मना श्रवनु, (बोहिलाभा) बोधिलाभाः- मनी प्राप्ति३५ माशिवामनु', (अभिगमा) अभिगमाः-सहमस विवे४३५ मलिरामनु', (सम्मत्तविसुद्धया) सम्यक्तवविशुद्धतासम्प नी विशुद्धतानु, (थिरत्त) स्थिरत्वं-स्थिरतानु', (मूलगुणउत्तरगुणाइयारा) मूलगुणोत्तरगुणातिचाराः-श्रावना भूगुए भने उत्तरगुणेना अतिथानु, (ठिईबिसेसां य) स्थितिविशेषाश्च-श्रा५४ पर्याय३५ स्थितिविशेषनु', (बहुविसेसा)बहुविशेषाः-मी७ ५९ मने मामतानु', (पडिमाभिग्गहग्गहणा पालणा) प्रतिमाभिग्रहग्रहणपालनानि--सभ्य - Pule प्रतिमा तथा मAS सेवा मने तेना पाननु, (उवसग्गाहियासणा) उपसर्गादि सहनानि-हेवा इत सो सहन ४२वानु, (णिरूवसग्गाय) निरुपसर्गाश्च-मने अपना मभावनु न थयु छ. तथा (तवा य विचित्ता)तपांसि विचित्राणि-मनना
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર