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________________ ७२४ समवायानसूत्रे गमनिक्खेवणयप्पमाणसुनिउणोवकमविविहप्पगारपगडपयासियाणं लोगालोगपयासियाणं संसारसमुद्दरुंदत्तरणसमत्थाणं सुरवइसंपूजियाणं भवियजणवयहिययाभिनंदियाणं तमरयविद्धंसणाणं सुदिट्र दीवभूयईहामइबुद्धिबद्धणाणं छत्तीससहस्समणूणयाणं वागरणाणं दंसणाओ सुयत्था बहुविहप्पगारा सीसहियत्थ य गुणमहत्था । वियाहस्स णं परित्ता वायणा, संखेजा अणुओगदारा, संखेजा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निजुत्तीओ संखेजाओ संगहणीओ संवेजाओ पडिवत्तीओ । से गंअंगट्टयाए पंचमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, एगे साइरेगे, अज्झयणसए, दस उद्देसगसहस्साइं, दस समुद्देसगसहस्साइं, छत्तीसं वागरणसहस्साइं, दो लक्खा अटासीई पयसहस्साइं २८८००० पयग्गेणं पण्णत्ताइं । संखेज्जाइं अक्खराइं, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा, सासयकडणिबद्धणिकाइया जिणपण्णत्ता भावो आघविनंति पण्णविनंति परूविजंति, दसिज्जति, निदंसिज्जंति, उवदंसिर्जति । से एवं आया, से एव णाया, से एवं विण्णाया। एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ ६। से तं वियाहे । ॥सू. १७८॥ टीका--'से किं तं' इत्यादि-से किं तं वियाहे' अथ का सा व्याख्या ? 'वियाहे' इति निर्देशः प्राकृतत्वात् । व्याख्या प्रज्ञप्तिः, नामैकदेशेन नामग्रहणात् । अब सूत्रकार पंचम अंग का स्वरूप कहते हैंशब्दार्थ-(से किं तं वियाहे) अथ कासा व्याख्या-हे भगवन व्याख्या प्रज्ञप्ति अर्थात् भगवती सूत्र का क्या स्वरूप हैं(वियाहेग)व्याख्यायां खलु. शय -(से किं तं वियाहे) अथ काऽ सा व्याख्या?- मावान् व्याच्या प्रशस्ति मेटले 3 लापती सूत्रनु उ २१३५ छ? (वियाहेण)व्याख्यायां खलु શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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