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________________ ६७२ समवायानसूत्रे उद्देशनकाल है। इस प्रकार ७६+९८८५ उद्देशनकाल हो जाते हैं। पचासी ८५ ही समुद्देशनकाल हैं। ये काल भी सूत्राध्यापन समयरूप हैं। पद परिणाम की अपेक्षा इस अंग में अठारह १८ हजार पद है । अर्थवान जो शब्द स्वरूप है उसका नाम पद है। शंका-"यहां जो-अठारह १८ हजार पद का परिणाम कहा गया है वह परिणाम यदि२५पचीस अध्ययनात्मक श्रुतस्कंधद्वय का है तो "नवाबंभचेर मइओ अट्ठारसपदसहस्साओ वेओ" यहकथन विरुद्ध पडता है" उत्तर--"दो श्रुतस्कंध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं, पचासी ८५ उद्देयनकाल है, पचासी ८५ समुद्देशनकाल हैं, एसा जो कहा है वह आचारांग का प्रमाण कहा है। और जो ऐसा कहा है "अट्ठारसपदसहस्साई पदग्गेणं' सो वह नव ब्रह्मचर्याध्ययनात्मक प्रथम श्रुतस्कंध का प्रमाण जानना चाहिये। इस आचरांग में वेष्टक आदिकों को संख्यात होने के कारण अक्षर संख्यात हैं। अनंतागमा' अनतगम हैं। गम शब्द का अर्थ है पदार्थबोध वे अनंत-अंतरहित हैं। इनमें अनंतता इस प्रकार से है-कि 'एगे आया' इत्यादि रूप एक ही सूत्र से, तत्तद्धर्मविशिष्टत्वेन अनंतधर्मात्मक वस्तु का बोध होता है। अर्थात् वस्तु तो अनंतधर्मात्मक है-परन्तु 'एगे आया' इत्यादि सूत्र से उस वस्तु में किसी अपेक्षा से अन्य धर्म गौण करके एकत्व धर्म का बोध होता है, દેશનકાળ પણ ૮૫ પંચાસી જ છે. તે કાળ પણ સૂવાધ્યયન સમયરૂપ છે. આ અધ્યયન મા૧૮૦૦૦ અઢાર હજાર પદે છે. અર્થયુકત શબદ સ્વરૂપને “પદ કહે છે. શું કા - “અહીં જે પદનું પ્રમાણ અઢાર હજારનું કહ્યું છે તે પ્રમાણ જે બને શ્રુતસ્કંધના ૨૫ पयास सध्ययनानु डायते'नव बंभचेरमइओ अद्यारस पद सहस्सिओ वेओ' આ કથનની વિરૂદ્ધ લાગે છે.” ઉત્તર–“બે કૃતસકંધ છે, પચીસ અધ્યયન છે, याशी (८५) टेशन छ, मने पायाशी (समुद्देशन छ." मे रे ४९. पामा सावेत जे ते मायागनु प्रभाए . मने "अट्ठारसपदसहस्साई पदग्गेणं" मेने हे छे ते प्रथम श्रुत २४ घना नव ब्रह्मचर्याध्ययननु प्रमाए। સમજવાનું છે. આ આચારાંગમાં વેષ્ટક વગેરે સંખ્યાત હોવાથી અક્ષરનું પ્રમાણ सध्यात छ. "अणंता गमा" सनत म छे. 'आम' शम्न। 'म थाय छे. यहाथ माध, ते मनत-मत २डित छे.तमा मारे मनतता छ-"एगे आया" ઈત્યાદિરૂપ એકજ સૂવથી તે, તે વિશિષ્ટ ધર્મ વડે અનંત ધર્માત્મક વસ્તુનો બોધ थाय छे. सटसे वस्तु मे मानत पाणी छे-५५५ "एगे आया" त्या સૂત્રથી તે વસ્તુમાં કઈ દષ્ટિએ અન્ય ધર્મને ગૌણ કરીને એકત્વ ધમનો બેધ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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