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समवायानसूत्रे
पञ्चलक्षतमं समवायमाह -
मूलम् - लवणस्स णं समुदस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरमंताओ पञ्चत्थिमिले चरमंते एस णं पंचजोयणसयसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते ॥ सू० १६७॥
टीका - - ' लवणस्स णं' इत्यादि - 'लवणस्स णं समुद्दस्स' लवणस्य खलु समुद्रस्य 'पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ' पौरस्त्याच्चरमान्तात् 'पच्चत्थिमिल्ले चरमं ते ' पाश्चात्यश्वरमान्तो योऽस्ति, 'एस णं' एष खलु 'पंच जोयणसयसहस्साई' पश्च योजनशतसहस्राणि - पञ्चलक्षयोजनानि - एकं लक्ष जम्बूद्वीपस्य, चत्वारि लक्षाणि लवण समुद्रोभयपार्श्वयोरिति पञ्चलक्षयोजनानि ' अबाहाए' अबाधया=व्यवधानेन 'अंतरे' अन्तरे - दूरे 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः॥सू. १६७॥
है विस्तार जंबूद्वीप की अपेक्षा दूना है। धातकी खंड का लवण समुद्र से दूना विस्तार है। विष्कंभका यह क्रम अन्ततक समझना चाहिये - अर्थात् अंतिमद्वीप स्वयंभूरमण से आखिरी समुद्र स्वयंभूरमण का विष्कंभ दूना है अतः धातकीखंड का विस्तार चार४लाख योजन का सिद्ध हो जाता है। सू. १६६ ॥ पांच लाख वां समवाय इस प्रकार से है - ' लवणस्स णं समुदस्स' इत्यादि ।
टीकार्थ- - लवणसमुद्र के पूर्व का अन्तिम भाग से जो उसका पश्चिम का अन्तिम भाग है वह व्यवधान अन्तर की अपेक्षा पांच लाख योजन दूर है । वह इस प्रकार से जानना चाहिये - जंबूद्वीप के १ लाख योजन को और चार लाख योजन लवण समुद्र के दोनों पार्श्व भाग के जोडने से यह सूत्रोक्त अंतर निकल आता है ॥ १६७॥
કરતાં બમણેા છે. ધાતકીખંડના વિસ્તાર લવણુસમુદ્રથી ખમણેા છે. વિષ્ણુંભના આ પ્રમાણેને ક્રમ અત સુધી સમજવાના છે, એટલે કે અંતિમદ્વીપ સ્વયંભૂરમથી આખરી સમુદ્ર સ્વયંભૂરમણતા વિભ બમણા છે. તેથી ધાતકીખ'ડના વિસ્તાર ચાર લાખ યોજનને છે. તે સિદ્ધ થાય છે. સૂ. ૧૬૬૫
यांय सामनां समवायो या प्रमाणे छे -- 'लवणस्स णं समुदस्स' इत्यादि ।
ટીકા—લવણસમુદ્રના પૂના અન્તિમ ભાગથી પશ્ચિમના અન્તિમ ભાગનુ અંતર પાંચ લાખ યોજનનું અંતર અને લવણસમુદ્રના બન્ને છેડા વચ્ચેનુ ચાર લાખ યોજનનુ અંતર મળીને સૂત્રેાકત પાંચ લાખ ચૈાજનનુ અંતર આવી જાય छे. ॥ सू. १६७ ॥
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર