SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 589
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवायाङ्गसूत्रे ताई, तं जहा - उजुसुयं परिणयापरिणयं एवं अट्ठासीइ सुत्ताणि भाणियव्वाणि जहा नंदीए । मंदरस्स णं पव्वयस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरमंताओ गोधूमस्स आवासपव्वयस्स पुरत्थिमिले चरमंते एस णं अट्ठासी जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते । एवं चउसु वि दिसासु नेयव्वं । बाहिराओ उत्तराओ णं कट्टाओ सूरिए पढमं छम्मासं अयमाणे चोयालीस ममंडलगए अट्ठासीइ एगसट्टिभागे मुहुत्तस्स दिवसखेत्तस्स निवुत्ता रयणिखेत्तस्स अभिनिपुत्ताणं चारं चरइ । दक्खिणकट्टाओ णं सूरिए दोचं छम्मासं अयमाणे चोयाली सइम मंडलगए अट्ठासीइ एगसट्टिभागे मुहुत्तस्स रयणिखेत्तस्स निवुत्ता दिवसखेत्तस्स अभिनिवुट्टित्ता णं चारं चरइ ॥ सू० १२७॥ टीका- ' एगमेगस्स णं' इत्यादि - ' एगमेगस्स णं' एकैकस्य खलु 'चंदमसूरियस्स' चन्द्रमः सूर्यस्य - चन्द्रमाश्च सूर्यश्वेति समाहारसमासे चन्द्रम:- सूर्य तस्य - चन्द्रसूर्ययोरित्यर्थः, 'अट्ठासी अट्ठासी महग्गहा' अष्टाशीतिरष्टाशीतिमहाग्रहाः 'परिवारो' परिवार: = परिवारतया 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ताः । यद्यपि महाग्रहा अन्यत्र चन्द्रपरिवारतयैवप्रोक्ताः, किन्तु अत्र सूर्यस्यापीन्द्रत्वान्महाग्रहास्तत्परिवारतयाऽपि प्रोक्ताः 'दिट्टिवायरस णं' दृष्टिवादस्य खलु = परिकर्मसूत्रअब सूत्रकार ८८ अठासी वें समवाय का कथन करते हैं-'एगमेगस्सणं इत्यादि । ५७० w टीकार्थ - एक २चन्द्र और सूर्य के अठासी अठासी ८८-८८ महाग्रह परिवाररूप से कहे गये हैं। यद्यपि दूसरी जगह महाग्रहों को चंद्रमा के परिवाररूप से ही कहा है परन्तु यहां जो सूर्य का भी परिवार महाग्रहों को कहा गया है वह सूर्य इन्द्र है इस अपेक्षा से कहा है। हवे सूत्रार मध्याशी (८८) नां समवायो बतावे - " एगमेगस्स णं" इत्यादि ! टीडार्थ - प्रत्येक यन्द्र ने सूर्यना परिवार३य महयासी, महयासी (८८-८८) મહાગ્રહ કહેલ છે. જોકે બીજી જગ્યાએ મહાગ્રહોને ચન્દ્રમાના જ પરિવારરૂપ કહેલ છે, પણ અહી મહાગ્રહાને સૂર્યના પણ પરિવારરૂપ દર્શાવ્યા છે તે સૂર્ય ઇન્દ્ર શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy