SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 585
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समवायाङ्गसूत्रे सप्ताशीतितमं समवायमाह-'मंदरस्स णं' इत्यादि । मूलम्-मंदरस्स णं फव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पञ्चथिमिल्ले चरमंते एस णं सत्तासीइं जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते१। मंदरस्स णं पव्वयस्स दक्खिणिल्लाओ चरमंताओ दगभागस्स आवासपव्वयस्स उत्तरिल्ले चरमंते, एस णं सत्तासीई जोयणसहस्साइं अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। एवं मंदरस्स पञ्चािमलाओ चरमंताओ संखस्स आवासपव्वयस्स पुरथिमिल्ले चरमंते, एस णं सत्तासीई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पन्नत्ते३। एवं चेव मंदरस्स उत्तरिल्लाओ चरमंताओ दगसीमस्स आवासपव्वयस्स दाहिणिल्ले चरमंते, एस णं सत्तासीई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पन्नत्ते४। छण्हं कम्मपगडीणं आइमउवरिल्लवज्जाणं सत्तासीइ उत्तरपगडीओ पन्नत्ताओ५॥ महाहिमवंतकूडस्स णं उवरिल्लाओ चरमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेडिल्ल चरमंते, एस णं सत्तासीइ जोयणसयाइं अबाहाए अंतरे पन्नत्ते। एवं रुप्पिकूडस्सवि ७ ॥सू. १२६॥ टीका--'मंदरस्स णं पचयस्स' इत्यादि । 'मंदरस्स णं पव्ययस्स' मन्दरस्य खलु पर्वतस्य 'पुरथिमिल्लाओ चरमंताओ' पौरस्त्याञ्चरमान्तात् 'गोथुभस्स घनोदधि वातवलय की मोटाई बीस हजार योजन की है। इन दोनों का आपस में जोड करने से८६छियासी हजार योजन का अन्तर होता है |सू० १२५॥ __ अब सूत्रकार सतासीवे ८७ समवाय का कथन करते हैं-'मंदरस्सणं पब्बयस्सा' इत्यादि । टीकार्थ-मंदर पर्वत के पौरस्त्य चरमांत प्रदेश से गोस्तूप नामक તેની નીચે વીસ હજાર જનની જાડાઇમાં છે. તેથી તે બને અંતરનો સરવાળો કરવાથી ૮૬૦૦૦ છાસી હજાર એજનનું અંતર આવી જાય છે. સૂ, ૧૨ પાસ वे सूत्र४२ सत्याशी (८७) नां समवायो मतावे छ-"मंदरस्स णं पव्वयस्स" इत्यादि ! શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy