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________________ भावबोधिनी टीका. पञ्चदशसमवाये पञ्चदशपरमाधार्मिकादीनां निरूपणम् १९७ हारिणो नारकांस्तदीयोत्कर्तित पृष्ठादिस्थं मांसं कदर्थनया भक्षयति, वर्णेन च महाश्यामत्वान्महाकाल उच्यते ||८|| असिपत्रः स देवो योऽसि (तरवारि)तुल्यपत्राणां वनं विरचय्य तच्छायाभिलाषेण समागतान्नारकिणो विकृतवाता न्दोलनपूर्वकम सिषत्रपातनेन खण्डश - छिनत्ति 'असिपत्र' इत्यत्र अर्श आदित्वादच् ॥९॥ धनुः स यो धनुषो विनिर्मुकैरर्द्धचन्द्राकारैर्वाणैः कर्णौष्ठनासादीन् श्रवयवान् नारकिणां छिनत्ति || १० || कुम्भः विविधासु उष्ट्रकाकाराद्यासु कुम्भीषु नारकिणो भ्रंश पचति हन्ति च ११ वालु भ्रष्ट्रस्य तप्तवज्र वालुकासु नारकान् स तडत्कारं चणकादीनिव भर्जयति । वैतरणी = नरकस्थनदी, तदधिष्ठातृत्वेन तद् देवोऽपि गृहादारा परमधार्मिक असुर, पूर्वजन्म में जीवों ने मांस का भक्षण किया है उन नारकियों को उन्हीं के पृष्ठादि के मांस को काट २ कर खिलाता है। वर्ण में यह अत्यंत काला होता है इसलिये इसका नाम महाकाल है८, नववा असिपत्र नामक परमाधार्मिक असुर वे देव हैं जो असि के जैसे पत्रों का बन अपनी विक्रिया से रच कर उसकी छाया सेवन की अभिलाषा से आये हुये नारकियों के शरीर के विकृत वातान्दोलन (हवाचलाकर ) पूर्वक असिपत्र के पात से खंड २ कर देता है९ । दसवां धनुजाति का परमाधार्मिक वह असुर हैं जो धनुष से विनिर्मुक्त अर्धचंद्राकार बाणों से नारकियों के कान ओठ आदि अवयवों को छेदता है१० । ग्यारहवां कुम्भ जाति का परमधार्मिक असुर वह है जो उष्ट्राकारवाली कुम्भियों में नारकियों को बुरी तरह पकाता है और मारता भी हैं११। बारहवां बालु नामका परमाधार्मिक असुर भाड की संतप्त वज्र बालू का में नारकियों को मुंजते समय फड २ करते हुए चनों की तरह भुंजता है१२| तेरहवां वैतरिणी (७). मउभे! 'महाकाल' नामनो के परमाधार्मिक असुर छे ते पूर्व४न्मां ने વેએ માંસ આદિનું ભક્ષણ કર્યું " હેાય તે નારકીઓને તેમના જ પૃષ્ઠાદિ ભાગાનુ માંસ કાપી કાપીને ખવરાવે છે. તે ર ંગે અતિશય કાળેા હેાવાથી તેનું નામ મહાકાલ’ છે.(૮) नवभो 'असिपत्र' नामने। परमाधार्मिक असुर छे. ते सेवा छे ने पोतानी वैम्यि શકિતથી તલવાર જેવાં પાન વાળાં વન બનાવે છે, અને તેની છાયાનું સેવન કરવાની ઇચ્છાથી તેની નીચે આવેલ નારકીઓનાં શરીરનાં કૃિત વાતાન્દોલન પૂર્વક [પવનનુ તાક્ાન ઉત્પન્ન કરીને] અસિપત્રાને નીચે પાડીને ટુકડે ટુકડા કરી નાખે છે (૯). દસમા 'धनु' नामनो परभाषाभि असुर धनुष्य भांथी छोडेसां अधय द्राार माशोथी नारी - खोना होई, छान आदि अवयवानु छेहन पुरे छे (१०) अगियारमे । 'कुम्भ' જાતિના પરમાધામિક અસુર ઉલ્ટ્રાકારની ભિચેામાં નારકીઓને ખરાબ રીતે પકાવે છે તથા भारे छे (११.) आरभो 'बालु' नामने। परमाधार्मिक असुर लट्ठीभां गरम रेल વજાની રેતીમા નારકીઓને, શેકતી વખતે ક્રૂડ મૂડ કરતા ચણાની માફ્ક સેકે છે શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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