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________________ १८७ दशवे अङ्ग प्रश्नव्याकरण के स्वरूप का निरूपण ७९६-८०७ १८८ ग्यारह वे अङ्ग विपाकश्रुत का निरूपण ८०७-८३३ १८९ आचारााङ्गादि ग्यारह अंगो के पदसंख्या दर्शक कोष्टक -८३४ १९० बारह वे अंग दृष्टिवाद के स्वरूप का निरूपण ८३५-८७६ १९१ बारह वे अंग की विराधना से और आराधना से क्या फल होता है उनका निरूपण ८७५-८८८ १९२ जीवराशी और अजीवराशी का निरूपण ८८९-९९२ १९३ असुरकुमारादिकों के आवासादिक का निरूपण ८९२-९४२ १९४ नैरयिक जीवों की स्थिति का निरूपण ९४२-९५१ १९५ नारकादि जीवों के अवगाहना का निरूपण ९५१-१००६ १९६ अवधिज्ञान के स्वरूप का निरूपण १००६-१०२० १९७ जीवों के आयुबन्ध के स्वरूप का निरूपण १०२१-१०३३ १९८ जीवों के संस्थान संहनन वेदादि के स्वरूपका निरूपण १०३४-१०५० १९९ समवसरण के स्वरूप का निरूपण १०५०-१०५१ २०० कुलकरों के महापुरुषों के नामादि निरूपण १०५२-१०५३ २०१ तीर्थकर के पिता आदि के नामका निरूपण १०५३-१०७६ २०२ तीर्थकर के प्रथम भिक्षा दाताओं के नामका निरूपण १०७६-१०७७ २०३ तीर्थकरों के चैत्यक्ष के नामका निरूपण १०७७-१०८० २०४ तीर्थकरों के प्रथम शिष्य के नामका निरूपण १०८१-१०८३ २०५ तीर्थकरों के प्रथम शिष्यों के नामका निरूपण १०८३-१०८५ २०६ बारह चक्रवर्तियों के नामका निरूपण १०८५-१०८६ २०७ बारह चक्रवर्तियों के माताओं के नामका निरूपण १०८७-१०८८ २०८ चक्रवर्तियों के और उनके स्त्रियों के नामका कथन १०८८-१०९० २०९ बलदेव और वासुदेवों के मातापिताओं के नामका कथन १०९०-१०९३ २१० गुणनिर्देश पूर्वक बलदेव और वासुदेव के नामका कथन १०९४--१११० २११ बलदेव और वासुदेव के पूर्वभवीय नामका कथन ११११-१११२ २१२ बलदेव और वासुदेव के ९नव धर्माचार्य के नामका निरूपण १११३-१११४ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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