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________________ भावबोधिनी टीका दशमसमवाये नैरयिकाणां स्थित्यादि निरूपणम् १३३ मत्ताङ्गका सुखपेय परमस्वादुरसदायकाः, 'भिंगा' भृङ्गा=रत्नकटोरक-सुवर्णस्थाल प्रभृति भाजनदायिनः, 'तुडिअंगा' त्रुटिताङ्गाः मृदङ्गादिवाद्यदायिनः, 'दीव' दीपाः पदीपवत्प्रकाशकारकाः, 'जोइ' ज्योतिषः अग्निकार्यकारिणः, 'चित्तंगा' चित्राङ्गाः-विविधसुगन्धिपुष्पदायिनः, 'चित्तरसा' चित्ररसा: मनोभिलषित मनोज्ञभोजनदायिनः, 'मणिअंगा' मण्यङ्गाः हाराहाराद्याभरणदायिनः 'गेहागारा' गेहाकारा: गेहस्यैवाकारो येषां ते गेहाकाराः, द्विचत्वारिंशद् भूमभवनाकारपरि. णता इत्यर्थः, 'अणिगिणा' अनग्नकाः अनग्नत्वसंपादका वस्त्रदायिन इत्यर्थः २८|| मूलम्--इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणंजहनेणं दसवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं दस पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता । चउत्थाए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्साइं पत्ता । चउणत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । पंचमीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं जहणणेणं दस सागरोवमाइं ठिई प्रकार-मत्ताङ्गक-ये सुखपेय परम स्वादुरस के देनेवाले होते हैं १, भृङ्ग ये रत्नकी कटोरियों को और सुवर्ण के थाल आदि भाजनों को देते हैं २, त्रुटितांग-ये मृदङ्ग आदि वाद्यों को देते हैं ३, दीप ये उज्जवल प्रदीप का प्रकाश प्रदाता होते हैं ४, ज्योतिष-ये अग्नि के कार्य को करते है ५. चित्राङ्ग-ये विविध सुगंध से भरे हुए पुष्पों को देते हैं ६, चित्ररस ये मनोनुकूल मनोज्ञ भोजन प्रदान करते हैं ७ । मण्यङ्ग-ये हार, अर्धहार आदि आभरणों को देते हैं ८, गेहाकार-ये बयालीस ४५ खंड के मकानों को देते हैं ९, और अनग्नक जाति के कल्पवृक्ष सुन्दर कीमती वस्त्रों को देते हैं १०॥० २८॥ हार, ५२म स्वादिष्ट २स नारा हाय . (२)भृङ्ग ते २त्नानी टोरीयो तथा सुव. ना था माह पात्रो छे. ()त्रुटितांग ते भृह माहि पायो ? छ दीप ते तेवी दीवान। प्राश हुना२i छ. (५) ज्योतिष ते मना ने आय ४२ छ. (6) चित्राङ्ग ते विविध सुमधाथी म२५२ पु०। छे (७) चित्ररस ते मानने अनु० भनाश न पाये छ. (८) मण्यङ्ग ते १२ १५ ॥२, माहि मानुपए। माये छ. ()गेहाकार ते मे तालीस वाणां भडाना मा छे. मन (१०) अनग्नक तिनi ४८५१क्ष सुरमा सुंदरीमती पत्रो माघे छे. ॥सू २८॥ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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