SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावबोधिनी टीका नवमसमवाये नवब्रह्मचर्यगुप्तेनिरूपणम् परिहारपूर्वकं लोकसारभूतं रत्नत्रयमासेव्यमिति प्रतिपादकमध्य यनं पञ्चमम् । 'धुय' धुतं-पूर्व पश्चात्संगानां परित्यागः, तत्प्रतिपादक षष्ठमू । 'विमोहो' विमोह = माहवशसमुत्पन्नषु परापहादिषु विमोहो भवेत्, तान् सम्यक सहे तेति यत्राभिधीयते तद् विमोहनामकं सप्तममध्ययनम् । 'उपहाणसुयं उपधानश्रुतम्-भगवता महावीरेण यदुपधानं यदुग्रतप; समाचरितम् तत्प्रतिपादकं श्रुतम् उपधानश्रुतं नामा. श्रमम् । 'महपरिण्णा' महापरिज्ञा-महती परिज्ञा-महापरिज्ञा अन्तक्रिया लक्षणा सम्यग्विधेयेति प्रतिपादकं महापरिक्षेतिनामकं नवमम् । पार्थः खलु अर्हन का नाम लोकसार है। अज्ञान, मोह आदि के परिहारपूर्वक लोक में सार भूत रत्नत्रय का अच्छी तरह से सेवन करना चाहिये, इस विषय को प्रतिपादन करने वाला यह आवन्ती' नामका पांचवां अध्ययन है ५। पूर्वसंग और पश्चात् संग का परित्याग करना इसका नाम 'धुत' है। इस वात का प्रतिपादन करने वाला यह 'धुत' नाम का छठवां अध्ययन है ६। मोह के वश समुत्पन्न हुए परीषह आदिकों को अच्छी तरह सहन करना चाहिये यह विषय 'विमोह' नामक सप्तम अध्ययन में प्रतिपादित किया गया है। अतः इस विषय का-प्रतिपादन करने वाला होने से इस अध्ययन का नाम 'विमोह' हुआ है। यह सातवां है। भगवान श्री महावीर स्वामीने जिस उपधान (उग्र) तप को समाचरित किया है उस तप का प्रतिपादक श्रुत उपधानश्रुत है। यह आठमा अध्ययन है ८ अन्तक्रियारूप महती परिज्ञा अच्छी तरह से धारण करना चाहिये इस विषय को प्रतिपादन करने वाले अध्ययन का नाम महापरिज्ञा है। और यह नौवां अध्ययन है । इस प्रकार ये समस्त अध्ययन ब्रह्मचर्य के नाम રાં બીજ નામ છે. રત્નત્રયને લોકસાર કહે છે. અજ્ઞાન મેહ આદિના પરિત્યાગ કરીને લેકમાં સારભૂત રત્નત્રયનું સારી રીતે સેવન કરવું જોઈએ, એ વિષયનું પ્રતિपाहन ४२ना२ ते "आवन्ती” नामनु पांय, अध्ययन छे. (५) ५ । मन पश्चात् सपना परित्याग ४२ तेनु नाम 'धु त' छे. ते वातनु प्रतिपादन ४२नार ga નામનું છઠ્ઠું અધ્યયન છે (૫) મેહને કારણે ઉત્પન્ન થયેલ પરીષહોને સારી शत सहन ४२वा नये, ते विषयनु"विमोह" नामना सातमा अध्ययनमा प्रतिપાદન કરેલ છે, તેથી એ વિષયનું પ્રતિપાદન કરનાર હોવાથી તે અધ્યયનનું નામ "विमोह" छ. (७) लगवान महावीर शमी २ थान (G) तप युत તે તપનું પ્રતિપાદન કરનાર સૂત્ર “ઉપધાનશ્રત’ છે, અને તે આઠમું અધ્યયન છે. (૮) અન્તક્રિયારૂપ મહતી પરિજ્ઞા સારી રીતે ધારણ કરવી જોઈએ, તે વિષયનું પ્રતિपाहन ४२ना२ मध्ययननु नाम “महापरिज्ञा" छे. मने ते नभु मध्ययन छे. म। શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy