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________________ ११४८ समवायाङ्गसूत्रे हैं-(कुलगर वंसेइ य एवं तित्थगर वंसेइ य गणहर वंसेइ य चक्कवटिवंसेइ य दसार वंसेइ य) कुलकर वंशेति च एवम् तीर्थकर वंशेति च-गणधर वंशेति च चक्रवर्तिवंशेति च दशाहवंशेति च-कुलकरों के वंश का प्रतिपादक होने के कारण इस शास्त्र का नाम कुलकर वंश है। तीर्थंकरों के वंश का कथन करनेवाला होने के कारण इस शास्त्र का नाम तीर्थंकर वंश है। इसी तरह से गणधरों के वंशका प्रतिपादक होने के-कारण इस शास्त्र का नाम गणधर वंश है । चक्रवर्तियों के वंश का प्रतिपादक होने से इसका नाम चक्रवर्तिवंश, तथा दशाहवंश का प्रतिपादक होने से दशाहवंश (ईसिवंसेइ य जइ वंसेइ य मुनिवंसेइ य) ऋषिवंशइति च, यतिवंश इतिच, मुनिवंश इति च-ऋषियों-गणधरों से अतिरिक्त तीर्थकर शिष्यों के वंश का प्रतिपादक होने से ऋषिवंश तथा ऋषि मुनि, यति ये शब्द समान अर्थ वाले होने से यतिवंश मुनिवंश है। (सुएइ वा सुअंगेइ वा सुयसमासेइ वा सुयखंधेइ वा समवाएइ वा संखेड वा) श्रुतेति वा श्रुताङ्गेति वा श्रुतसमासेति वा श्रुतस्कन्धेति वा समवायेति वा संख्येति वा-तथा त्रिकाल संबंधी अर्थ के बोधन कराने में समर्थ होने के कारण इसका नाम श्रुत है। प्रवचन पुरुष का अंग होने के कारण इसका नाम श्रुताङ्ग ऐसा भी है । समस्त सूत्रों के अर्थो का यहां संक्षेप में प्रतिपादन होने से इसका नाम श्रुतसमास ऐसा भी है। श्रुत समुदायरूप होने से इसका नाम श्रुतइ य एवं तित्थगरवंसइय गणहरवंसेइ य चक्कवहिवसेइ य दसारवंसेइय) कुलकर वंशेति च एवम् तीर्थकरवंशेति च गणधरवंशेति च चक्रवर्तिवंशेति च दशाह वंशेति च-सन शनु प्रतिपा६४ लावाथी सा शाखनु नाम 'स४२५ ।' છે. તીર્થકરોના વંશનું પ્રતિપાદક હોવાથી આ શાસ્ત્રનું નામ તીર્થકરવંશ” છે. એ જ પ્રમાણે ગણધરોના વંશનું કથન કરનાર હોવાથી આ શાસ્ત્રનું નામ “ગણધરવંશ છે. ચકવતિના વંશનું પ્રતિપાદક હોવાથી આ શાસ્ત્રનું નામ “ચક્રવર્તિ५' छ, तथा शाशनु प्रतिपाइ हावाथी तेनु नाम 'शाश' ५५ छे. (ईसिसेइय जइवंसेईय मुनि वंसेइय) ऋषिवंश इति च, यतिवंश इति च, मुनिवंश इति च-ऋषियो-७५ सिवायना तीय शना शिष्याना शनु પ્રતિપાદક હોવાથી તેનું નામ “ઋષિવંશ” છે. કષિ, મુનિ, યતિ, એ શબ્દો સમાન मा पाथी तेनु नाम यति भुनिक छ. (सुएइवा सुअंगेइवा सुयसमासेइ वा सुयखंधेइ वा समवाएइ वा संखेइवा)श्रुतेति वा, श्रुताङ्गेति वा श्रुतसमासेति वा श्रुतस्कन्धेति वा समवायेति वा संख्येति वा तथा नये आणना मनु मा५ पाथी तेनु नाम "श्रुतसमास" ५५५ छ. श्रुतस हाय३५ पाथी तेनु શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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