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___ समवायाङ्गसूत्रे लग्नवक्षसः-ये जिस एकावली हार को अपने कण्ठ में धारण किये रहते है वह इनकी छातीतक लटकता रहता है (सिरीवच्छसुलंछणा) श्रीवत्ससुलाच्छनाः-श्रीवत्सस्वस्तिक का इनके चिह्न होता है (वरजसा) वरयशसः-ये बडे यशस्वी होते हैं। (सव्वउयसुरभिकुसुमरइयपलंचसो. भंतकंतविकसंतविचित्तवरमालरइयवच्छा) सर्वऋतुकसुरभिकुसुमरचितम लम्बशोभमानकान्तविकसविचित्रवरमालारचितवक्षस्काः-इनका वक्षः स्थल सर्वऋतुसंबंधीसुरभित कुसुमों से रचितलम्बी२ मालाओं से कि जिनकी रचना विचित्रप्रकार की होती है और जो बडी सुहावनी लगती हैं उनसे युक्त रहा करता है । (अट्टतरसयविभत्तलवखणपसत्थ सुंदरविरइयंगमंगा) अष्टोत्तरशतविभक्तलक्षणप्रशस्तसुन्दरविरचिताङ्गाङ्गाः--इनके प्रत्येक अंग पृथकू २ अवस्थित एकसौ आठ १०८ शंख, चक्र आदि चिह्नों से युक्त रहा करते थे अतः वे बडे प्रशस्त और सुन्दर होते हैं। (मत्तगयवरिंदललियविक्कमविलसियगई) मनगजवरेन्द्रललितविक्रमगतय:-मदोन्मत्त श्रेष्ठ गजराजों की मनोहर गति जैसी इनकी गति-चाल विलास युक्त होती है। (सारयनवणियमहुरगंभीरकुचनिग्धोसदुंदुभिसरा)शारदनवस्तनितमधुरगंभीरक्रौञ्चनि?षदुन्दुभिस्वराः--इनकी दुदुभियों का निर्घोष शरदऋतुसंबंधी मेध के समान तथा क्रौंच पक्षी के शब्द जैसा होता २ तेमनी छाती सुधा aest sal. (सिरीवच्छसुलंछणा) श्रीवत्स सुलाच्छनातमने श्रीवत्स पतिनु थिह य छे. (वरजसा) वरयशसः-तमा ५५ यशस्वी ता. ( सव्वउयसुरभिकुसुमरइयपलंबसोभंतकंतविकसंतविचित्तव. रमालर इयवच्छा ) सर्वऋतुकसुरभिकुसुमरचितमलम्बशोभमानकान्तविक सद् विचित्रवरमालारचितवक्षस्का:-सव*तुन सुविहार पु०पोमाथी मना વેલી, અદ્ભુત પ્રકારની રચનાવાળી, અને અતિશય સુંદર, અને લાંબી समी भावासोथी तमना पक्षस्य या २४ता उतi. (अकृतरसय विभत्तलक्खणपसत्थसुंदरविरइयंगमंगा) अष्टोत्तरशतविभक्तलक्षणप्रशस्तः सुन्दरविरचिताङ्गाङ्गा- छाया मायदा २५, ५ मा १०८ से। આઠ ચિહનેથી તેમના પ્રત્યેક અંગયુકત હોય છે. તેથી તે અંગે ઘણાં સુંદર લાગે છે. (मत्तगयवरिंदललिय विक्कमविलसियगई) मत्तगजवरेन्द्रललितविक्रमगतयःમદોન્મત શ્રેષ્ઠ ગજરાજેની મને હર ગતિ જેવી તેમની ગતિ-ચાલ વિલાસયુકત हाय छे. ( सारयनवथणियमहुरगंभीर'चनिग्धोसदुंदुभिसरा ) शारदनवस्तनितमधुरगंभीरक्रौञ्चनिर्घोषदुन्दुभिस्वराः--तमना लोमानी ना २२. *तुन मेघना २ तथा ओय पक्षाना Aqा डाय छे. (कडिसुत्नग
શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર