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________________ भावबोधिनी टीका. गुणनिर्देशपूर्वकं बलदेववासुदेवनामनिरूपणम् १०९७ नहीं करते थे (मियमंजुलपलाबहसिया) मितमजुलप्रलापहसिताःये परिमित बातचीत करते थे तथा जो भी कुछ कहते वह बहुत आनंददायक होता था इनका जो हास्य होता था वह भी परिमित एवं बडा मनोमुग्धकारी होता था। (गंभीरमधुरपडिपुण्णसञ्चवयणा) गम्भीर मधुरप्रतिपूर्णसत्यवचनाः-रोषतोष और शोक आदि विकार से वर्जित होने के कारण गंभीर श्रवण-सुखकारी होने के कारण मधुर और अर्थ बोधजनक होने के कारण प्रतिपूर्ण ऐसे इनके सत्यवचन होते हैं। (अब्भुगयवच्छला) अभ्युपगतवत्सला ये शरणागतवत्सल होते हैं । (सरण्णा) शरण्याः-दीन हीनजनों की रक्षा करने में ये कटिबद्ध रहते हैं (लक्खण. वंजणगुणोक्वेया) लक्षणव्यञ्जनगुणोपपेताः-वज्र स्वस्तिक और चक्र आदि चिह्नरूप लक्षणों तथा तिल, मसा आदिरूप व्यंजनों के मह दिलाभादि रूप गुणों से ये युक्त होते है। (माणु-माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंग सुंदरंगा) मानोन्मानप्रमाणप्रतिपूर्णसुजातसर्वाङ्गसुन्दराङ्गाः-मान, उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण होने के कारण यथोचित सन्निवेशवाले हैं अंग जिसमें ऐसे सुन्दर शरीरवाले ये होते हैं । (ससि सेामागारकंतपियदसणा) शशिसौम्याकारकान्तप्रियदर्शना:-जिनका अवलोकन चन्द्रमा के समान ०५४ ५२ तेथे विना ४।२९१५ ४२ता नता, (मियमंजुलपलावहसिया) मितमजुलपलापहसिताः--तो पाभित पातयात ४२नारा, मानहाय चयनवाणी मने परिमित तथा भने १२ १२यवाणा ता. (गंभीरमधुरपडिपुण्ण सञ्चवयणा) गम्भीर मधुर प्रतिपूर्ण सत्यवचना:-राष, मा वि२थी રહિત હોવાને કારણે ગંભીર, સાંભળનારને સુખદાયી હોવાથી મધુર, અને અર્થ माधर पाने ४२रणे प्रतिपूसा सत्यवयन मे सनास ता. (अब्भुगयवच्छला) अभ्युपगतवत्सला-ते। २०२९तवत्सस ता, (सरण्णा) शरण्याः -हीन, भने (नराधारनु २२५ ४२वाने भाटे सहा तत्५२ २उता जता, (लक्खणवंजण गुणोववेया) लक्षण व्यञ्जनगुणोपपेता-१००, स्वस्ति, 25 4 शुम लक्षणे। તથા તલ, મસા આદિરૂપ વ્યંજનના મહદ્ધિ લાભારિરૂપ ગુણથી તેઓ યુકત डोय छे, (माणुम्माणपमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगा) मानोन्मानप्रमाण प्रतिपूर्णसुजातसर्वाङ्गसुन्दराङ्गा:--मान, Sमान भने प्रमानी परिपूर्ण ताने લીધે તેમના અવયવો સપ્રમાણ અને સુડોળ લાગે છે. અને સપ્રમાણ અંગોને सी तमना शरीर अतिशय सुंदर दागे छे. (ससिसोमागारकंतपियंदसणा) शशिसौम्याकारकान्तप्रियदर्शना:--मनु शन यन्द्रमानी नेम Vis १३८ શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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