SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1074
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावबोधिनी टीका. कुलकरनामादिस्वरूपनिरूपणम् १०५५ टीका-'जंबुद्दीवेणं'इत्यादि-'जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे' जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे भारते वर्षे 'तीयाए उस्सप्पिणीए' अतोतायामुत्सर्पिण्याम् ‘सत्तकुलगरा' सप्तकुल कराः 'होत्था' आसन , 'तं जहा' तद्यथा-मित्तदामे सुदामेय सुपासे य संयंपभे। विमलघोसे सुघोसे य महाघोसे य सत्तमे मित्रदामा सुदामा च सुपावश्च स्वयंप्रभः। विमलघोषः सुघोषश्च महाघोषश्च सप्तमः ।।१।। 'जंबुद्दीवे णंदीवे भारहे वासे तीयाए ओसप्पिणीए दस कुलगरा होत्था' जम्बुद्वीपे खलु द्वीपे भारते वर्षे तृतीयस्यामवसर्पिण्यां दश कुलकरा आसन, 'तं जहा' तद्यथा'सयंजले सयाऊय, अजियसेणे अणंतसेणे य। कजसेणे भीमसेणे, महाभीमसेणे य सत्तमे॥ दढरहे दसरहे सत्तरहे।' स्वयंजलः शतायुश्च, अजितसेनोऽनन्तसेनश्च । कार्यसेनो भीमसेनो महाभीमसेनश्च सप्तमः॥२॥ दृढरथो दशरथः शतरथः । 'जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणी समाए पत्तीण णामाइ) कुलकर पत्नीनां नामानि-कुलकरपत्नीनां नामानि-ये कुलकरों की पत्नियों के नाम हैं ॥मू० १९६।। टीकार्थ-'जंबुद्दीवे णं दीवे ईत्यादि-जंबूद्वीप नामके द्वीप में भारतर्ष में भूतकाल की उत्सर्पिणीकाल में सात कुलकर हुए। वे इस प्रकार से हैं।मित्रदामन१ सुदामन्२ सुपाचद स्वयंप्रभ४ विमलधोष५ सुघीष६ और सातवें महाघोष७। इस जम्बूद्वीप नाम के द्वीप में भारतववर्ष में तृतीय अवसर्पिणीकाल में दस कुलकर हुए हैं। उनके नाम इस प्रकार से हैंस्वयंजल १, शतायु२ अजितसेन३. अनंतसेन४ कार्यसेन५ भीमसेन६ सातवें महाभीमसेन७ दृढरथ८ दशरथ९ दशवें शतरथ१०। इस जम्बुद्वीप-नामके प्रथम द्वीप में भारतवर्ष में इस चालू अवसर्पिणी काल में सात कुलकर मरुदेवी) (६) श्रीन्ता भने (७) भरुवी. (कुलगरपत्तीणणामाई) कुलकर पत्नीनां नामानि-से प्रमाणे १९शनी पत्नी साना नाम इतi.सू.१८६॥ ___टी --जंबूद्दीवेणं दीवे इत्यादि-द्वी५ नमना द्वीपमा माता ભારતવર્ષમાં ત્રીજા ઉત્સર્પિણીકાળમાં સાત કુલકરે થયા હતા. તેમનાં નામ આ प्रमाणे ता-(१) भित्रामन् (२) सुदामन (3) सुपाव, (४) स्वय प्रल, (५) વિમલશેષ, (૬) સુઘોષ, અને (૭) મહાષ. આ જંબુદ્વીપ નામના દ્વીપમાં આવેલા ભારતવર્ષમાં ત્રીજા અવસર્પિણીકાળમાં દસ કુલકર હતા. તેમનાં નામ मा प्रमाणे छ-(१) स्वयंस,.(२) शतायु, (3) अतिसेन, (४) मन तसेन,(५) आय सेन, (6) भीमसेन, (७) महालीमसेन, (८) १८२थ, (6) ६श२५ भने (१०) શતરથ આ જંબુદ્વિીપ નામના દ્વીપમાં આવેલા ભારતવર્ષમાં વર્તમાન અવસપિ. શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy