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________________ १०३६ समवायाङ्गसत्रे गौतम! छह संहननों से इनके एक भी संहनन नही होने से ये असं. हनिनी कहे गये हैं। (णेव अट्ठि) नैवास्थि-इनके न हड्डी होती है। (णेव छिरा) नैव शिराः-न शिराएँ होती है,(णेव हारू) नैव स्नायुः-न स्नायुएँ होती हैं (जे पोग्गला अणिट्ठा) ये पुद्गाः अनिष्टा:- तथा जो पुद्गल उन्हें सदा सामान्यरूप में अनिष्ट-अवल्लभ होते हैं (अकंता) अकान्ताः-अकान्त-अकमनीय होते हैं, अप्पियाः-अप्रियाः-अपिय-सर्वदेष्य होते हैं, (अणाएज्जा) अनादेयाः-अनादेय-अग्राह्य होते हैं, (असुभा) अशुभा:-असुभ-स्वभावतः ही असुन्दर होते हैं। (अमणुग्णा) अमनोज्ञाअमनोज्ञ-जिनका नाम लेने से भी मन में अरुचिभाव उत्पन्न हो जाता है, (अमणामा) अमन आमा:-अमन आम-विचार करने मात्र से भी जिनके प्रति चित्त में अप्रीति भाव जग जाता है ऐसा होते हैं, (अमणाऽभिरामाः-तथा जो अमनोभिराम होते हैं (ते तेसिं असंघयणत्ताए परिणमंति) ते तेषां असंहननतया परिणमन्ति-ऐसे वे पुद्गल उन नारक जीवों के हड्डी आदि से रहित शरीर विशेषरूप से परिणत होते हैं। (असुरकुमारोणं भंते किं संघयणी पण्णत्ता) असुरकुमाराः खलु भदन्त ! कि-संहननिनः प्रज्ञप्ता ? हे भदंत ! असुरकुमार देवों के शरीर किस संहनन से युक्त होते हैं ? उत्तर-(गोयमा छण्हं संघयणाणं असंघयणी) હે ગૌતમ! છ સંહનમાંના એક પણ સંહનથી તેઓ યુકત હતા નથી તેથી तेभने असहननी ४९ छे. (णेव अहि) नैवास्थि-तेभने मस्थि होतi नथी, (णेव छिरा) नैव शिराः-शिराय छाती नथी, (व हारू) नैव स्नायु:स्नायु होता नथी, (जे पोग्गला अणिट्ठा) ये पुद्गलाः अनिष्टा:-तारे पुगिसो तभने सहा सामान्य रीते अनिष्ट-मसन हाय छ, (अकंता) अक्रान्ताः५४ा-त-ममनीय हाय छे, (अप्पिया) अप्रिया:-मप्रिय-मयाने भाटे अश्रीतिन डाय छे. (अणाएजा)अनादेयाः-20 डाय छ, (असुभा)अशुभाः वालापि शते । असुर डाय छ, (अमणुण्णा) अमनोज्ञा-ममनाश-मेनु नाम सेवाथी ५५ ५॥ थाय वा हाय छ, (अमणामा) अमनआमा:-२नो વિચાર કરવાથી પણ જેના પ્રત્યે ચિત્તમાં અપ્રીતિ-અણગમો જાગે એવા डाय , (अमणाभिरामा) अमनोऽभिरामा:-तथा रे ममनासिराम जय छ, (ते ते सिं असंघयणत्ताए परिणमंति) ते तेषां असंहननतया परिण मन्तिતેવાં તે પુદ્ગલે તે નારકી જીવે નાં અસ્થિ આદિથી રહિત શરીરરૂપે પરિણમે છે. (अप्सरकुमारोणं भंते! किं संघयणी पण्णत्ता) ! असुशुभार नां शरी२ ४यां सहननयी युताय ? 6त्तर-(गोयमा छह संघयणाणं શ્રી સમવાયાંગ સૂત્ર
SR No.006314
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1219
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_samvayang
File Size68 MB
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