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________________ सुधा टोका स्था०१० सू० २९ चमराद्यष्युतेन्द्राणामुत्पातपर्यंत निरूपणम् दस्स देवरण्णो सक्कप्पभे उप्पायपव्वए दस जोयणसहस्साई उड्ड उच्चत्तेणं, दस गाउयसहस्साइं उब्वेहेणं, मले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं पण्णत्ते । सक्कस्स णं देविदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो जहा सक्कस्स तहा सव्वेसि लोगपालाणं, सव्वेसि चइंदाणं जाव अच्चुयस्सत्ति | सव्वेसिं' पमाणमेगं १० सू. २९ । छाया -- चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य तिगिच्छिकूट : उत्पातपर्वतो मूले दश द्वाविंशर्ति योजनशतानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्तः । चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य सोमस्य महाराजस्य सोमप्रभउत्पातपर्वतो दश योजनशतानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, दशगव्यूतशतानि उद्वेधेन, मूले दश योजनशतानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्तः । चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य यमस्य गणितानुयोगको लेकर ही अब सूत्रकार चमर आदि अच्युतेन्द्रोंके उत्पात पर्वतोंका प्रमाण सहित कथन करते हैं (6 चमस्सणं असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो " इत्यादि ० २९ । शब्दार्थ - असुरेन्द्र असुरकुमार राज चमर का जो तिगिच्छकूट नामका उत्पात पर्वत है, वह मूलमें एक हजार २२ योजन प्रमाण विष्कम्भवाला है, इन असुरेन्द्र असुर कुमारराज चमरके जो लोकपाल सोम महाराज हैं, उनका सोमप्रभ नामका उत्पात पर्वत ऊंचाई में १० सौ योजनका कहा गया है, तथा उद्देधसे (गहराई ) वह १० सौ गव्यून प्रमाणका कहा गया अर्थात् जमीनमें इसका मूल भाग नीचे १००० कोश गहरा गया है, और मूलमें इसका विष्कम्भ १ हजार योजन कहा है तथा इन असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल जो यम महाराज हैं उसका यमप्रभ नामका उत्पात पर्वत भी इसी प्रकार के प्रमाणवाला है, वरुण ગણિતાનુચેાગના આધાર લઈને હવે સૂત્રકાર ચમર આદિ અચ્યુત પ ન્તના ઈન્દ્રોના પવતાનું પ્રમાણ સહિત કથન કરે છે– R 61 चमरस्त णं असुरिंदरस असुरकुमाररन्नो " इत्यादि - (सू. २७) શબ્દાય-અસુરેન્દ્ર, અસુરકુમારરાજ ચમરને જે તિગિચ્છકૂટ નામના ઉત્પાત પવ ત છે તે મૂળમા ૧૦૨૨ ચેાજનપ્રમાણ વિશ્ક'ભવાળા છે. અસુરેન્દ્ર, અસુરકુમારરાજ ચમરના લેાકપાલ સામ મહારાજના સોમપ્રભ નામના જે ઉત્પાત પવ ત છે તેની अयाई इस से। ( १००० ) योजननी, अने तेनो उद्वेध ( भूजलाग नीथेनी ઊંડાઇ) દસ સા ગદ્યૂત પ્રમાણ-૧૦૦૦ કેાસની છે તેના મૂળભાગના વિશ્વભ એક હજાર યેાજનને કહ્યો છે. અસુરેન્દ્ર, અસુરરાજ ચમરના લેકપાલ યમ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫
SR No.006313
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages737
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size39 MB
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