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________________ सुघा टीका स्था०८ सू० ५५ पर्वतोपरिस्थितकूटस्वरूपनिरूपणम् १७५ प्तानि, तद्यथा--स्वस्तिकः, अमोहः-इत्यादि । तत्र- स्वस्तिकादिषु कूटेषु महर्दिका यावत्पल्योपमस्थितिका अष्टौं दिक्कुमारीमहत्तरिकाः परिवसन्ति, तद्यथा-इला. देवी सुरादेवीत्यादि । तत्र-स्वस्तिककूटवासिनी इलादेवी ८, अमोहकूटयासिनी सुरादेवी २, हिमवत्कूटवासिनी पृथिवीदेवी ३, मन्दरकूटवासिनी पद्मावती देवी ४, रुचककूटवासिनी एकनासादेवी५, रुचकोत्तभकूटवासिनी नरमिका देवी ६, चन्द्रकूटवासिनी सीतादेवी ७, सुदर्शनकूटयासिनी भद्रादेवी ८। एता इलादेच्या. दयो दिक्कुमायौँ भगवतोऽहं तो जन्ममहोत्सवे तालवृन्तहरता गायन्त्यो भगवन्तं पर्युपासते, इति ॥ ९ ॥ तथा-जम्यूमन्दरस्य उत्तरस्यां दिशि रुचकचरपर्यते अप्टौ उस पर्वत पर आठ रुचक कूट कहे गये हैं इनके नाम इस प्रकारसे है-स्वस्तिक १, अमोह २, हिमवान् ३, मन्दर ४, रुचक ५, रुचकोत्तम ६, चन्द्र ७, और सुदर्शन ८ इन आठों कूटों पर आठ दिक्कुमारिकाएँ जो महर्द्धिक यावत् पल्योपमकी स्थितिवाली हैं, रहती हैं । इनके नाम इस प्रकार से हैं-इलादेयी १, सुरादेवी २, पृधिची ३, पद्मावती ४, एकनासा ५ नवमिका ६ सीता ७ और आठवीं भद्रा इनमें जो इलादेवी हैं, वह स्वस्तिक कृट पर रहती है । सुरादेवा अमोह कट पर रहती है, पृथिवी देवी हिमवत् कट पर रहती है, पद्मावती देवी मन्दरकूट पर रहती है एकनासा देवी रूचककूट पर रहती है नवमिका देवी रुचको त्तम कूट पर रहती है, सीतादेवी चन्द्रकूट पर रहती हैं, भद्रादेवी सुदर्शन कूट पर रहती है ये इला आदि देवियां भगवान् अर्हन्तके जन्म महोत्सव पर तालवृन्त बीजना हाथमें लेकर गाना गाती हैं और भगवान की पर्युपासना करती है । ५। तथा-जम्बूदीपस्थित मन्दर 'त ५२ 248 रुयट Zi . तमना नाम 24t प्रमाणे हे-(१) २५स्ति, (२) मोड, (3) भिवान्, (४) म.४२, (५) २३४, (६) रुन्योत्तम, (७) यन्द्र, અને (૮) સુદર્શન. તે આઠે ફૂટે પર મહદ્ધિક આદિ પૂર્વોક્ત વિશેષણોવાળી અને એક પાપમની સ્થિતિવાળી આઠ દિકકુમારીઓ વસે છે. તેમનાં નામ 24 प्रमाणे छ-(1) साहेपी, (२) सुराहेपी, (3) पृथिवी. (४) पापती, (6) नासा, (९) नयभिडा, (७) सीता अने लद्री. सावी स्वस्तिपूट ५२, સુરાદેવી અમે હકૃટ પર, પૃથિવીદેવી હિમવત્ ફૂટ પર, પદ્માદેવી મદરકૂટ પર, એકનાસાદેવી ચકફૂટ પર, નવમિકાદેવી રુચકોત્તમકૂટ પર, સીતાદેવી ચન્દ્રકુટ પર અને ભદ્રાદેવી સુદર્શનકૂટ પર નિવાસ કરે છે. આ ઈલા આદિ આઠે દિક કુમારિકાએ અહંત ભગવાનના જન્મમહોત્સવના સમયે હાથમાં તલવૃન્ત (વીજણે) લઈને ગીત ગાય છે અને ભગવાનની પર્યું પાસના કરે છે. પિ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫
SR No.006313
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1966
Total Pages737
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size39 MB
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