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________________ 'ॐ अर्हन् ' प्रातःस्मरणीय, व्याख्यानवाचस्पति, चारित्रचूडामणी, परमप्रतापी पूज्य गुरुदेव श्री मदनलालजी महाराजकी जीवनरेखाएँ. गुणमंजुमालासे हृदय शोभायमान विशाल था, जिनका मुनिमल चरित पालनसे चमकता भाल था; संयम अचल उन' मदनमुनि' को हृदयपट पर मै धरूं, जग पाप हर गुरु पद कमलको भावयुत वंदन करूं. प्रातःस्मरणीय, चारित्र चड़ामणी, पूज्य गुरुदेव व्याख्यान-वाचस्पति श्री मदनलालजी महाराज सिंह की भांति संयम मार्ग पर आए और सिंहकी वृत्तिसेही अंत तक उसका पालन करते रहे । उनके ज्ञान और चारित्रका प्रकाश आज भी भेरे अन्तर्मनको प्रकाशित करता है। ___ प्रज्वलित दीपक जब तेलसे परिपूर्ण होता है, तो स्वयंको प्रकाशित करते हुए बाहर भी प्रकाश फैलाता है, और अन्धकार पर विजय पाता है। व्या० वा गुरुदेव श्री मदनलालजी महाराजका संयमी जीवन इसी प्रज्वलित दीपकके समान था-चारित्र रूपी तेलसे परिपूर्ण और ज्ञानसे प्रकाशित, सबको प्रकाशित करने वाला था। रेखाचित्र: इन महात्माके दर्शन सन् १९५४में सर्व प्रथम हुए जब आपश्रीका सबजीमंडी-दिल्ली में वर्षावास-चातुर्मास था। आपके बारेमें सुन रखा था कि आप बहुत प्रभावशाली संत हैं, हरेक साधारण व्यक्तित्वमें तो आपके सामने जानेकी क्षमता ही नहीं । बालबुद्धिमें ये बात समानाने से आपश्री के निकट जानेमें मन हिचकोले खा रहा था, डर लगता था कहीं डपट न दें। माताजी के आग्रहसे अन्तमें एक दिन श्री चरणों में पहुँच हो गया-और ठगा सा रह गया, उन महान कल्पवृक्ष की गरिमा देखकर । प्रभावशाली ललाट ! चमकता, हंसता और पुर-जलाल चहेरा । मस्तक पर धवल केश-राशि । काले चश्में में दूसरे व्यक्तिके मनकी थाह लेनेवाले नेत्र । धवल खादी के स्वच्छ वसन । मुख पर मख-पत्रिका और बगल में रजोहरण । गज गामिनी, मस्तानी चाल । अद्भुत शांति और सौम्यता किंतु प्रतिवादीके लिये सदा अजेय व्यक्तित्व । पावन संस्मरण गुरु मंत्र ( सम्यक्त्व पाठ ) देने के बादके उनके स्नेहाशीर्वादसे छलकते શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૪
SR No.006312
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages775
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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