________________ स्थानाङ्गसूत्रे तानेवाह-तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियार्थ:-श्रूयतेऽनेनेति श्रोत्रम्, तच्च तदिन्द्रियं च श्रोत्रेन्द्रियं तस्य अर्थो विषयः शब्दः / यावत्-शब्दात्-चक्षुरिन्द्रियार्थः घ्राणेन्द्रियार्यः रसनेन्द्रियार्थश्च ग्राह्यः / तत्र चक्षुरिन्द्रियार्थों रूपम् , घ्राणेन्द्रियार्थो गन्धः / रसनेन्द्रियार्थो रसा, स्पर्शनेन्द्रियार्थश्च स्पर्श इति / तथा-मुण्डः-मुण्डनम्-अपनयनम्-मुण्डः / स च द्विविधो-द्रव्यतो भावतश्च / तत्र-द्रव्यतः केशापनयनम् / भावतस्तु मनस इन्द्रियार्थनिष्ठ रागद्वेषयोः कषायाणां चाऽपनयनम् / द्रव्यमापरूपमुण्डयोगात् पुरुषोऽपि मुण्डः। स च पञ्चविधः प्रज्ञप्तः / पञ्चविधत्वमाह-तद्यथा-थोत्रेन्द्रियमुण्ड:-श्रोत्रेन्द्रिये मुण्डः श्रोत्रेन्द्रियेण वा मुण्डः / श्रोत्रेन्द्रियविषयशब्दे रागाद्यपनयनात् पुरुषः श्रो. ऐसी जो इन्द्रिय है वह प्रोत्रेन्द्रिय है / इस इन्द्रिय का विषय शब्द है, यहां यावत् शब्दसे " चक्षुरिन्द्रियार्थः घ्राणेन्द्रियार्थः रसनेन्द्रियार्थः स्पर्शनेन्द्रियार्थः " इनका ग्रहण हुआ है / चक्षुइन्द्रिय का विषय रूप है घाणेन्द्रिय का विषय गन्ध है, रसनेन्द्रिय का विषय रस है, और स्पर्श. नेन्द्रिय का विषय स्पर्श है / दूर करने का नाम मुण्ड है, यह मुण्ड दो प्रकार का होता है, एक द्रव्य से मुण्ड और दूसरा भाव से मुण्ड केशों का दूर करना, मस्तक से केशों का लुंबन आदि करना यह द्रव्य से मुण्ड है तथा मनसे इन्द्रिय के अर्थों में रागद्वेप करने का अथवा कषाय करने का त्याग करना यह भाव से मुण्ड है / इस द्रव्य और भावरूप मुण्ड के संबंध से पुरुष भी मुण्ड होता है, यह मुण्ड पांच प्रकार कहा गया है / जैसे-श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड, जो श्रोत्रेन्द्रिय में मुण्ड अथवा श्रोत्रછે. એવાં તે ઈન્દ્રિયાર્થી શબ્દાદિ રૂપ પાંચ પ્રકારના હોય છે. જેના દ્વારા સંભળાય છે તે ઇન્દ્રિયને શ્રોત્રેન્દ્રિય કહે છે. તે ઇન્દ્રિયને વિષય શબ્દ છે.. અહીં “યાવત્ ' પદ વડે ચક્ષુરિન્દ્રિયોથે, ધ્રાણેન્દ્રિયાર્થ, રસનેન્દ્રિયાઈ અને સ્પર્શેન્દ્રિયર્થ ગ્રહણ કરવા જોઈએ. ચક્ષુઇન્દ્રિયને વિષય રૂપ છે, ધ્રાણેન્દ્રિયને વિષય ગબ્ધ છે, રસનાઇન્દ્રિયને વિષય રસ છે અને સ્પર્શેન્દ્રિયને વિષય 250 . 62 427 तेनु नाम " भु” छे. ते भु ( भुन) में प्रा२र्नु D--(1) द्रव्यनी अपेक्षा से भुन माने (2) मायनी अपेक्षा से भुन. मस्तકના કેશનું લંચન આદિ કરવું તેનું નામ દ્રવ્યની અપેક્ષાએ મુંડન છે. તથા મનથી ઈન્દ્રિયોના વિષમાં રાગદ્વેષ કરવા અથવા કષાય કરવાનો ત્યાગ કર તેનું નામ ભાવની અપેક્ષાએ મુંડન છે. આ દ્રવ્ય અને ભાવ રૂપ મુંs. श्री. स्थानांग सूत्र :04