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सुधा टीका स्था०३ 30 ३ सू० ४४ कषायवतां मायानिरूपणम् ७७ प्यन्ति ' इति कृत्वा नो आलोचयति नो प्रतिक्रामतीत्यादि ३॥ २॥ इदं च सूत्रमप्राप्तप्रसिद्धिपुरुषापेक्षम् । सामान्यजनस्यैवापकीर्तिसद्भावात् । 'तीहिं' इत्यादि, त्रिभिः स्थान:-कारणैः-कीर्त्यादिहानिरूपैर्मायावी मायां कृत्वा नो आलोचयति यावत् नो प्रतिपद्यते । तानि स्थानान्याह-कीर्तिर्वा मे परिहास्यति-कीर्तिः-पूर्वकालोपार्जिता प्रसिद्धिः परिहास्यति-हीना भविष्यति, यज्ञो वा मे परिहास्यति-यशः-लोकप्रसृतं प्रशंसारूपं तन्मे परिहास्यति नष्टं भविष्यति २। पूजासत्कारं वा मे परिहास्यति-पूजासत्कारमित्येकपदम् । तत्र-पूजावस्त्रादिना, सत्कार:-अभ्युत्थानादिना, तदुभयं मे परिहास्यति ३। इदं तु सूत्र प्राप्तप्रसिद्धिपुरुषापेक्ष समुपार्जितप्रसिद्धिकस्यैव कीर्त्यादि हानि सद्भावात्॥सू.४४॥ अभिप्राय से वह आलोचना आदि नहीं करता है यह सूत्र अप्राप्तप्र. सिद्धि वाले पुरुष की अपेक्षा से है, क्यों कि सामान्यजन की ही अपकीर्ति का सद्भाव होता है। ___ इन स्थानों को लेकर भी भायी माया को करके उसकी आलोचना नहीं करता है यावत् यह यथार्थ प्रायश्चित्त नहीं लेता है वे तीन स्थान इस प्रकार से हैं-" कीर्ति चो मे परिहास्थति" सब दिशा में यशका फैलना उसका नाम कीर्ति है यदि मैं आलोचना आदि करता हूं तो मेरी वह कीर्ति हीन हो जावेगी, अथवा मेरा यश कम हो जायेगा यहां यश से लोक में फैली हुई प्रशंसा गृहीत हुई है अथवा लोक में जो मेरा पूजा सत्कार होती है वह भी नष्ट हो जावेगा यहां " पूजासत्कार" यह एकपद हैं वस्त्र आदि की प्राप्ति हो जाना इसका नाम पूजा है, और मुझे देखकर जो अन्यजन खड़े आदि हो जाते हैं પણ તે આલેચના આદિ કરતા નથી. આ સૂત્ર અપ્રાણ પ્રસિદ્ધવાળી વ્યક્તિની અપેક્ષાએ કહેવામાં આવ્યું છે, કારણ કે સામાન્ય માણસની જ અપકીર્તિને સદ્ભાવ સંભવી શકે છે.
નીચેના ત્રણ સ્થાને (કારણે) ને લીધે માયી જીવ માયા કરીને તેની આલોચના, તેનું પ્રતિક્રમણ, નિંદા, ગહ, પ્રાયશ્ચિત આદિ કરતો નથી, कीर्तिर्वा मे परिहास्यति" नई मासोयना माहिरीश त!
पू ति भारी वतिना दा५ . (२) अथवा भारे। यश योछ। थरी. मही "यश" પદ દ્વારા લેકેમાં વ્યાપેલી કીર્તિ અથવા પ્રશંસાની ભાવના ગ્રહણ કરવી २. (3) “पूजासत्कार" शोभा २ मारे। सा२ थाय छेते ५॥ બંધ પડી જશે. વિઆદિ પ્રાપ્તિ થવી તેનું નામ પૂજા છે, ઊભા થઈને માન આપવું વગેરેને સત્કાર કહે છે. આ પ્રકારના વિચારથી પ્રેરાઈને તે દુષ્કૃત્યની
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨