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________________ सुघा टीका स्था०३३०२ सू० ४१ जीवपदार्थ निरूपणम् रूपणामाह - तिविहा' इत्यादि, स्थितिशीलत्वात् स्थावर नामकर्मोदयाच्च स्थावराः । ते पृथिव्यववनस्पति भेदात्त्रिविधाः । शेषं स्पष्टम् ॥ ० ४० ॥ उक्ताः पृथिव्यादयो जीवपदार्थाः संप्रति तत्प्रतिपक्षभूतान् जीवपदार्थान् प्ररूपयन्नष्टसूत्रीमाह मूलम् - तओ अच्छेजा पण्णत्ता, तं जहा समाए पएसे परमाणू १ । एवमभेज्जा२, अडज्जार, अगिज्झा४, अणड्डा५, अमज्झा६, अपएसा७, तओ अविभाइमा पण्णत्ता, तं जहासमय से परमाणू ॥ सू० ४१ ॥ ५५ छाया - त्रयोऽच्छेद्याः प्रज्ञप्तास्तद्यथा - समयः प्रदेशः परमाणुः १ । एवमभेद्याः अदाह्याः ३, अग्राह्याः ४, अनर्द्धाः ५, अमध्याः ६, अप्रदेशाः ७, त्रयोऽविभाज्याः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - समयः प्रदेशः परमाणुः ८ ॥ ० ४१ ॥ दो प्रकार के कहे गये हैं तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों को जो कहा गया है वह त्रस कैसा कहा गति वाले होने के कारण कहा गया है वैसे तो ये स्थावर ही जीव हैं लब्धित्रस द्वीन्द्रियादिक जीव हैं स्थावर जीव स्थिति शील होने से और स्थावर नामकर्म के उदयवाले होने से पृथिवीकायिक, अपकायिक और वनस्पतिकायिक के तीन स्थावर जीव हैं | सू०४० ॥ पृथिवी आदिक जीवपदार्थ कहे अब सूत्रकार अजीव पदार्थों का कथन करते हैं - ( तओ अच्छेज्जा पण्णत्ता ) इत्यादि । सूत्रार्थ - ये तीन पदार्थ अच्छेद्य कहे गये हैं जैसे- समय, प्रदेश और परमाणु इसी प्रकार से ये अभेद्य १, अदाह्य २, अग्राह्य ३ अनई ४ પડે છે. વાયુકાયિક અને તેજસ્કાયિક જીવેાને ત્રસ કહેવાનું કારણ એ છે કે તેએ ગતિવાળા છે-આમ તા તેઓ સ્થાવર જીવા જ છે. દ્વીન્દ્રિયાદિ જીવા લબ્ધિત્રસ છે. સ્થાવર જીવા સ્થિતિશીલ હોય છે. પૃથ્વીકાયિક, અકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક જીવા સ્થિતિશીલ હૈાવાથી તેમને સ્થાવર જીવે કહે છે, સૂ.૪૦ પૃથ્વીકાયિક આદિ જીવપદાર્થોનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રકાર અજીવ यहार्थेनुं निय] १३ छे- “ तओ अच्छेज्जा पण्णत्ता " त्याहि सूत्रार्थ-मा त्रष्णु पहार्थेने अछेद्य उद्यां छे - (1) समय, (२) प्रदेश भने (3) परभालु मे ४ प्रभाो आ त्राये पहार्थो खलेद्य १, महाह्य २, अग्राह्य उ, अनद्ध, ४ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨
SR No.006310
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages819
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size47 MB
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