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________________ ६७६ स्थानाङ्गसूत्रे जइतावि पराजिणितावि ३, एगा णो जइता णो पराजिणिता ४, ॥२॥ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--जइता णाममेगे णो पराजिणिता० ४ ॥३॥ चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा--जइता णाममेगा जयइ० १, जइता णाममेगा पराजिणइ२, पराजिाणता णाममेगा जयइ ३, पराजिणिता णाममेगा पराजिणइ० ४, ॥४॥ एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा--जइता णाममेगे जयइ ॥५४॥ छाया-चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा-संप्रकटप्रतिसेवी नामकः १, प्रच्छन्नमतिसेवी नामैकः२, प्रत्युत्पन्ननन्दी नामकः३, निःसरणनन्दी नामकः४।११ चतस्रः सेनाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा जेत्री नामैका नो पराजेत्री १, पराजेत्री नामैका नो जेत्री २, एका जेव्यपि पराजेयपि ३, एका नो जेत्री नो पराजेत्री४, २। एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा जेता नामैको नो पराजेता० ४, ॥३॥ तमस्काय का यह कथनरूप पर्यायसे किया गया है अब सूत्रकारअर्थपर्यायोंसे पुरुषकानिरूपण करते हैं-"चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता" इत्यादि। - पुरुषजात चार कहे गये हैं। जैसे कोई एक पुरुष ऐसा होता है जो सप्रकट प्रतिसेवी होता है १ कोई और इनमें ऐसा होता है जो प्रच्छन्न प्रतिसेवी होता है२ तथा कोई एक ऐमा होता है जो प्रत्युत्पन्ननंदी होता है ३ एवं कोई एक ऐसा होता है जो निःसरणनन्दी होता है ४ । सेना-चार कही गईहै जैसे एकजेत्री नो पराजेत्री १ दूसरी पराजेत्री नोजेत्री तीसरी जेत्री भी और पराजेत्री भी ३ चौथी नो जेत्री नो परा તમસ્કાયનું ઉપર્યુક્ત કથન વચનરૂપ પર્યાયની મદદથી કરવામાં આવ્યું છે. આ સંબંધને અનુલક્ષીને હવે સૂત્રકાર અર્થપર્યાય દ્વારા પુરુષનું નિરૂપણ ४२ता नीयन। सूत्रातुंथन ४२ छ. " चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता” छत्यादि( પુરુષના નીચે પ્રમાણે ચાર પ્રકાર કહ્યા છે–(૧) કેઈક પુરુષ સંપ્રદ પ્રતિસેવી હોય છે. (૨) કેઈક પુરુષ પ્રચછન્ન પ્રતિસેવી હોય છે. (૩) કોઈ એક પુરુષ એ હોય છે કે જે પ્રત્યુત્પન્નાનંદી હોય છે. (૪) કેઈ એક પુરુષ એ હોય છે કે જે નિસરણુનંદી હોય છે. મે ૧૫ या२ मारनी सेना ४ीछे--(१) २त्री-२॥ ५॥२त्री, (२) ५२रात्री नोत्री , (3) २त्री मन परात्री, (४) न त्री-न। ५२२त्री । २ । શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્રઃ૦ર
SR No.006310
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages819
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size47 MB
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