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________________ सुघा टीका स्था० ४ ० १ ० २ वृक्षदृष्टान्तेन पुरुषादिनिरूपणम् ३९१ वक्र वक्र ४ । यह चतुर्भङ्गी का प्रथम सूत्र वृक्ष दृष्टान्त सम्बन्धी है १ इस चतुर्भङ्गी को जय दार्टान्तिक के साथ योजित करते हैं, तब यह द्वितीय सूत्र बन जाता है-२ । ऋजु ऋजु परिणत १ ऋजु वक्र परिणत २ वक्र ऋजु परिणत-३ और वक्र वक्र परिणत यह चतुर्मङ्गी का तृतीय सुत्र वृक्ष दृष्टान्त सम्बन्धी है और-जय इसी चतुभङ्गी को दान्तिक के साथ घटित करते हैं तब यह चतुर्थ सूत्र बन जाता है । ऋजु ऋजु रूप १ ऋजु वक्ररूप २ चक्र ऋजुरूप ३ चक चक्ररूप ४ यह वृक्ष दृष्टान्त सम्बन्धी ५ वां सूत्र है, जब इसकी योजनो दान्तिक के साथ करते हैं-तब यह ६ छहा सूत्र बन जाता है। बिना दाष्टन्ति के जो सात सूत्र ऋजु-चक्रपद के साथ मन-सङ्कल्प प्रज्ञा दृष्टि-शीलाचार व्यवहार और पराक्रम पदों को जोड कर चतुर्भङ्गीके बनते हैं वे इस प्रकारसे हैं। ऋजुजुमन १, ऋजुवक्रमन २, वक्र ऋजुमन ३ वक्रवक्र मन ४ । ७ ऋजुऋजु सङ्कल्प १ ऋजुचक्रसंकल्प २ चक्रऋजु सङ्कल्प ३ चक्रचक्र सङ्कल्प ५।८। वृक्ष दृष्टान्त समधी पडेसा सूत्रना यार Hin-(१) *-१, (२) -१४, (3) 48- मन (४) १४-१४. २मा यतुम जान न्यारे - ત્તિક પુરુષ સાથે ચેજિત કરવામાં આવે છે ત્યારે બીજું સત્ર બની જાય છે. वृक्ष टान्त समधी श्री सूत्रना या२ लin-(१) - परिणत (२) ५४ परिणत, (3) १४-ॐ परिणत भने (४) 43-43 परिणत. ત્રીજા સૂત્રના ચાર ભાંગાને જ્યારે દાષ્ટાન્તિક પુરુષ સાથે ચેજિત કરવામાં આવે છે ત્યારે ચોથું સૂત્ર બની જાય છે. वृक्ष दृष्टांत समाधी पायमा सूत्रना या२ मां-(१) -* ३५, (२) * - ३५, (3) 43-* ३५ मन (४) ५४-५ ३५. * પાંચમાં સૂત્રના ચાર ભાગાને જ્યારે દાષ્ટાંતિક પુરુષ સાથે યોજિત કરવામાં આવે છે, ત્યારે છઠું સૂત્ર બની જાય છે. विना दृष्टान्तना (मेटले मात्र पुरुष, मनुसक्षीन) *Y-4 पहनी साये भन, स४६५, प्रज्ञा, दृष्टि, शाताया२, व्यय१२ मन पराभ, આ સાત પદેને અનુક્રમે જોડીને ચાર ચાર ભાંગાવાળા સાત સૂત્ર નીચે પ્રમાણે બને છે – सूत्र ७ भान यार Hin-(१) * * भन, (२) -4 मन, (3) 43-* मन, मन (४) 43-4 भन, हवामां सूत्रना यार लांग मट ४२वामा मावे छ-(१) * * स४८५, (२) 43 स४८५, (3) વક ઋજુ સંક૯પ અને (૪) વક વક્ર સંક૯પ. શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦ર
SR No.006310
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages819
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size47 MB
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