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________________ स्थानाङ्गसूत्रे छाया-प्रव्रज्या शिक्षात्रतानि अर्थग्रहणं चानियतो वासः । निष्पत्तिश्च विहारः, सामाचारी स्थितिश्चैव ॥१॥ __ इत्यादिरूपा स्थविरकल्पस्थिति रिति ३। इहच मूत्रद्वयेऽयं क्रमोपन्यासः सामायिके सति छेदोपस्थापनीयं भवति तस्मिंश्च सति परिहारविशुद्धिकभेदरूपं निर्वि शमानकं, तदनन्तरं निर्विष्टकायिक, तत्पश्चाग्जिनकल्पः स्थविरकल्पो वा भवतीति सामायिककल्पस्थित्यादीनां क्रम इति ।। मू० ७३ ॥ पूर्वोक्तकल्पस्थितीनां व्यतिक्रमविपरीतविधायका नारकादि शरीरिणो भवन्तीति नारकादिशरीरनिरूपणमाह मूलम्- नेरइयाणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-बेउविए तेयए, कम्मए । असुरकुमाराणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-एवं चेय । एवं सव्येसिं देवाणं । पुढवीकाइयाणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए तेयए कम्मए । एवं बाउकाइयावज्जाणं जाव चउरिदियाणं ॥ सू० ७४ ॥ कल्पस्थिति है इसका स्वरूप इस प्रकार है-" पठ्वज्जा सिक्खावय" इत्यादि, इत्यादिरूप यह स्थविरकल्पस्थिति है ३ यहां दो सूत्रों में यह क्रमोपन्यास है-सामायिक के होने पर छेदोपस्थापनीय होता है, छेदोपस्थापनीय के होने पर परिहार विशुद्धिक का भेदरूप निर्विशमानक होता है, बाद में-निविष्टकायिक होता है इसके बाद जिनकल्प होता है, अथवा स्थविरकल्प होता है, इस प्रकार से यह सामायिक कल्पस्थिति आदिकों का क्रम है। सू० ७३। इन पूर्वोक्त कल्पस्थितियों का व्यतिक्रम विपरीत करनेवाले नारकादि शरीरयाले होते हैं, अतः अव सूत्रकार नारकादि शरीर का निरूपण करते हैं “पवजा सिक्खावय" त्यादि ३५ मा स्थविर ४६पस्थिति राय छे. मही બે સૂત્રોમાં કમોપન્યાસ ( લેટે કમ) છે-સામાયિકના સદ્ભાવમાં છેદેપસ્થાપનીય થાય છે, છેદેપસ્થાપનીયના સદુભાવમાં પરિહાર વિશુદ્ધિક ભેદરૂપ નિર્વિશમાનક થાય છે, ત્યારબાદ નિર્વાિષ્ટકયિક થાય છે, ત્યારબાદ જિનક થાય છે, અથવા સ્થવિરક૯પ થાય છે. આ પ્રમાણે આ સામાયિક સ્થિતિ महिना म छे. ॥ सू. ७3 ।। આ પૂર્વોક્ત ક૫સ્થિતિના વ્યતિકમ (વિપરીતતા) કરનારા નારકાદિ શરીરવાળા હોય છે. તેથી હવે સૂત્રકાર નારકાદિના શરીરનું નિરૂપણ કરે છે. " तओ सरीरगा पण्णत्ता" त्याहि શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨
SR No.006310
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages819
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size47 MB
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