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चौथे स्थानका दूसरा उद्देशा प्रति संलीन और अप्रतिसंलीनका निरूपण ५८२-५८५ दीनके स्वरूपका निरूपण
५८६-५९२ आर्यादि पुरुषके स्वरूपका निरूपण
५९३-५९५ वृषभके द्रष्टान्तसे पुरुष के स्वरूपका निरूपण ५९६-६०१ हाथीके दृष्टान्तसे पुरुषके प्रकारका निरूपण ६०२-६११ विकथाके स्वरूपका निरूपण
६१२-६२९ कायविशेषका निरूपण
६३०-६३४ व्याघात के स्वरूपका निरूपण
६३५-६४० स्वाध्यायमें कर्तव्यता-अमर्तव्यताका निरूपण ६४१-६४४ स्वाध्यायमें प्रवृत्त हुवेको लोकस्थितिका निरूपण ६४५-६४६ त्रसपाण विशेष के स्वरूपका निरूपण
६४७-६५२ गह के स्वरूपका निरूपण
६५३-६५६ दोषत्यागी जीयके स्वरूपका निरूपण । ६५७-६६८ कारण उपस्थित होने पर साधुको अथवा साधीजीको परस्परमें आलापकादिमें आराधकत्वका
निरूपण ६६९-६७० तमस्कायके स्वरूपका निरूपण
६७१-६७५ सेनाके दृष्टान्त द्वारा पुरुषों के प्रकारका निरूपण ६७६-६८१ पर्वत-राज्य आदिके दृष्टान्तसे कषायके स्वरूपका
और उनको जीतने के प्रकारका निरूपण ६८२-६९७ संसारके स्वरूपका निरूपण
६९८-७०० आहारके स्वरूपका निरूपण
७०१-७०२ कर्मबन्धके स्वरूपका निरूपण
७०३-७२३ एक-कति और सर्व शब्दकी प्ररूपणा
७२४-७३० मानुषोत्तर पर्वत के कूटोंका निरूपण
७३१-७३२ जम्बूद्वीपगत भरत और ऐरवत पर्वतके कालका
निरूपण ७३३-७४६
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શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૨