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________________ ૨૮૨ स्थानाशस्त्र क्षेत्राधिकारादेव येऽप्रतिष्ठाने नरकक्षेत्रे, ये चाऽनतिष्ठानस्य स्थित्यादिभिः समाने सर्वार्थसिद्धमहाविमाने उत्पद्यन्ते तानाह मूलम्-तओ लोगे णिस्सीला णिव्वया णिग्गुणा णिम्मेरा णिप्पच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा अहे सत्तमाए पुढवीए अप्पइटाणे णरए णेरइयत्ताए उववज्जति, तं जहा-रायाणो, मंडलिया, जे य महारंभा कोडंबी । तओलोए ससीला सव्वया सगुणा समेरा सपच्चक्खाणपोसहोववासा काल मासे कालं किच्चा सव्वट्रसिद्ध महाविमाणे देवत्ताए उववत्तारो भवति, तं जहा रायाणो परिचत्तकामभोगा, सेणाई पसत्थारो। सू. २ २६॥ छाया-त्रयो लोके निश्शीला निर्वता निर्गुणा निर्मर्यादा निष्पत्याख्यान पौषधोपवासाः कालमासे कालं कृत्वा अधः सप्तम्यां पृथिव्यामप्रतिष्ठाने नरके नैरयिकतया उपपद्यन्ते, तद्यया-राननः, माण्डलिकाः, येच महारम्भाः कुटुम्बिनः। त्रयो क्षेत्र के अधिकार को लेकर ही सूत्रकार अब यह प्रकट करते हैं कि जो अप्रतिष्ठान नरकक्षेत्र में और जो स्थिति आदि की अपेक्षा से अप्रतिष्टान के समान सर्वार्थसिद्ध महाविमान में उत्पन्न होते हैं वे ये हैं (तओ लोगे णिस्सीला णिव्वया णिग्गुणा ) इत्यादि । सूत्रार्थ-लोकमें ये तीन पुरुष अधः सप्तमी पृथिवीमें अप्रतिष्ठान नामके नरकावास में नैरयिकरूप से उत्पन्न होते हैं क्यों कि ये शील से रहित होते हैं व्रत से रहित होते हैं मर्यादा से हीन होते हैं प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से रहित होते हैं। अतः जब ये कालमास में काल करते हैं तब ये सप्तम नरक में अप्रतिष्ठान नाम के नरकावास में नारक की पर्याय से उत्पन्न होते हैं। वे तीन ये हैं-१ राजा, २ माण्डलिक और ક્ષેત્રને અધિકાર ચાલી રહ્યો છે, તેથી હવે સૂત્રકાર અપ્રતિષ્ઠાન નરકક્ષેત્રોમાં અને સર્વાર્થસિદ્ધ મહા વિમાનમાં કયા કયા જીવ ઉત્પન્ન થાય છે, तट ४२ छ-" तओ लोगे जिस्सीला णिव्वया णिग्गुणा" त्यादि સૂત્રાર્થ–રાજા, માંડલિક અને મહારંભવાળા કુટુંબીજન, આ ત્રણે અપ્રતિષ્ઠાન નામના નરકાવાસમાં નારકે રૂપે ઉત્પન્ન થાય છે, કારણ કે તેઓ શીલથી રહિત, વ્રતથી રહિત અને મર્યાદાથી વિહીન હોય છે. તેઓ પ્રત્યાખ્યાન અને પૌષધપવાસથી પણ રહિત હોય છે. તે કારણે કાળને અવસર આવતા કાળ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧
SR No.006309
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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