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________________ - - - सुघा टीका स्था०२ उ०१ सू०५ क्रियादीनां द्वित्वनिरूपणम् २२३ ___पुनरन्यथा क्रियाया वैविध्यमाह-दो किरियाओ' इत्यादि । द्वे क्रिये प्रज्ञप्ते । तद् यथा-दृष्टिका, पृष्टिका चेति । दृष्ट-दर्शन, वस्तु या कारणत्वेन यस्यामस्ति, सा दृष्टिका । दर्शनार्थ या गतिक्रिया सा दृष्टिका । यद्वा-'दिडिया' इत्यस्य दृष्टिजा इतिच्छाया । दृष्टेोता दृष्टिजा दर्शनाद् यः कर्मबन्धरूपो व्यापारः सा दृष्टिजेत्यर्थः । तथा-' पृष्टिका' इति । पृष्टं-प्रश्नः, वस्तु वा कारणत्वेन यस्यमस्ति सा पृष्टिका । यद्वा-'पुट्ठिया.' इत्यस्य 'पृष्टिना' इतिच्छाया। पृष्टि:-पृच्छा, ततो जाता पृष्टिजा-सावधप्रश्नजनितो व्यापारः । तत्र-दृष्टिका क्रिया द्विविधा-जीव दृष्टिका, अजीवदृष्टिका चेति । अश्वादिदर्शनार्थ गच्छतो क्रिया में इस प्रकार से भी विविधता आती है-एक दृष्टि को लेकर और दूसरी दृष्टि को लेकर, जो क्रिया होती है वह दृष्टिका क्रिया है और पृष्टि को लेकर जो क्रिया होती है वह पृष्टि का क्रिया है दृष्ट दर्शन अथवा वस्तु जिस क्रिया में कारणरूप से है वह दृष्टिका क्रिया है दर्शन के लिये जो गति क्रिया होती है वह दृष्टिका है अथवा " दिडिया" की छाया " दृष्टिजा" भी हो सकती है दर्शन से देखने से जो कर्मबन्धरूप व्यापार होता है वह दृष्टिजा क्रिया है पृष्टिका प्रश्न अथवा वस्तु कारण रूप से जिस क्रिया में होता है वह पृष्टिका क्रिया है अथया-"पुट्टिया" इसकी संस्कृत छाया "पृष्टिजा" ऐसी भी होती है पृष्टि का अर्थ पृच्छा है सावध प्रश्न से जनित व्यापार से जो कर्मबन्ध होता है वह पृष्टिजा क्रिया है दृष्टिका क्रिया दो प्रकार ધતા સંભવી શકે છે–એક દૃષ્ટિની અપેક્ષાએ અને બીજી પૃષ્ટિથી અપેક્ષાએ. દૃષ્ટિની અપેક્ષાએ જે ક્રિયા થાય છે તેને દૃષ્ટિકા કિયા કહે છે. અને પૃષ્ટિની અપેક્ષાએ જે કિયા થાય છે તેને પૃષ્ટિક ક્રિયા કહે છે. દુષ્ટદર્શન અથવા વસ્તુના દર્શનરૂપ કિયા જેમાં કારણરૂપ હોય છે, તે કિયાને દૃષ્ટિક ક્રિયા કહે છે. દર્શનને માટે જે ગતિકિયા તે થાય છે તે દષ્ટિકા (या छ अथवा " दिठ्ठिया " नी छाया " दृष्टिजा" ५५ 25 श छे ४. નથી અથવા દેખવા રૂપ ક્રિયાથી જે કર્મબંધ રૂપ વ્યાપાર થાય છે તેને દૃષ્ટિજા કિયા કહે છે. પૃષ્ટિ એટલે પ્રશ્ન. પ્રશ્ન અથવા વસ્તુ જે ક્રિયામાં ४।२९३५ डाय छ, ते याने लिटा जिया ४३ छ. अथवा “ पुट्रिया " ! पहनी सकृत छाया " पृष्टिजा" ५५५ श छे. पृष्टि सेटले प्रश्न साप પ્રશ્નથી જનિત વ્યાપાર દ્વારા જે કર્મબંધ રૂ૫ વ્યાપાર થાય છે તેને પૃષ્ટિના (ज्या ४७ छ. या ठिया में ५४१२नी डाय छे. (१) १ ४ मन (२) શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧
SR No.006309
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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