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स्थानाङ्गसूत्रे (वसन्ततिलकावृत्तम् ) रत्नादिवस्तु निपुणैम्रियते निधाने, ___स्थाने तथा गणधरैर्निहितः शुभार्थः । तद्वोधनार्थमतुलार्थयुतां विशुद्धां,
व्याख्यां तनोमि तनुबुद्धिहिताय तस्मिन् ॥ ४ ॥ के कारणों का प्रचार एवं प्रसार में दत्तावधान बने हुए हैं अतः ऐसे परमोपकारी गुरु महाराज को मैं मन वचन काय की शुद्धि होने के लिये वारं वार नमस्कार करता हूं। क्यों कि सांसारिक भव्य जीवों को इनसे ही सम्यक्त्व जो मोक्ष महल की प्रथम सीढी है, प्राप्त होती है तथा श्रुतचारित्ररूप धर्म का लाभ होता है ॥ ३॥
शब्दार्थ-(निपुणैः ) जिस प्रकार चतुर-व्यक्ति अपनी (रत्नादि वस्तु ) रत्नादिरूप बहुमूल्य वस्तुओं को (निधाने ) तिजोरी आदि रूप खजाने में (भ्रियते) सुरक्षित भर कर रखता है (तथा ) उसी प्रकार (गणधरैः शुभार्थः स्थाने निहितः) गणधरों ने भी आत्मसाधक अर्थ को अथवा पुण्याणुबंधी पुण्य के कारणों को (स्थाने) योग्यस्थान मेंशास्त्रों में-निबद्ध करके भर दिया है रख दिया है अतः (तद्वोधनार्थम् ) उनके वहां पर भरे हुए उस अर्थ को स्पष्ट करने के लिये-उसे अच्छी तरहसे खुलाशा करके समझाने के लिये मैं-घासीलाल मुनि-व्रति આર્યખંડમાં પ્રભુ દ્વારા પ્રરૂપિત મોક્ષમાર્ગને અને આત્મશુદ્ધિના કારણોને પ્રચાર અને પ્રસાર કરવામાં પ્રયત્નશીલ બનેલા છે, એવાં પરપકારી ગુરુમહારાજને હું મન, વચન અને કાયાની વિશુદ્ધિ પ્રાપ્ત કરવાને માટે વારંવાર નમસ્કાર કરું છું. કારણ કે સાંસારિક ભવ્યજીને મોક્ષમહેલના પ્રથમ સોપાન રૂપ સમ્યકત્વ અને મૃતચારિત્રરૂપ ધર્મની પ્રાપ્તિ તેમના દ્વારા જ થાય છે. . ૩
हाथ-(निपुणैः) म यतु२ ०यति पातानी ( रत्नादि वस्तु ) २त्न पोरे ३५ भूल्यवान वस्तुमाने (निधाने ) तिरी मा ३५ मनमा (भियते ) भूटीन सुरक्षित रामेछ, ( तथा ) मेल प्रमाणे (गणघरैः शुभार्थः स्थाने निहितः ) धराये ५९मामसाधर अथ ने मथवा ५५यामधी पुण्यना रोने (स्थाने) योग्य स्थानमां-शास्त्रोमां-निमद्ध ४२ ( थान) म धेट छे. (तबोधनार्थम्) सोमा मरेत ते अर्थाने स्पष्ट ४२वाने માટે બહુ જ સારી રીતે ખુલાસા પૂર્વક તેને સમજાવવાને માટે હું-ઘાસીલાલ
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧