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________________ १८ स्थानाङ्गसूत्रे छाया-एका मतिः ॥ मू० ३१ ॥ व्याख्या-'एगा मन्ना' इति-- मननं मतिः-कथंचिदर्थनिर्णयेऽपि सूक्ष्मधर्मपर्यालोचनरूपा या बुद्धिः सेह मतिरुच्यते, सा च एका । अथवा-मति आलोचनं, सा चैकेति । अस्या अवग्रहादि भेदैश्चतुर्विधत्वेऽपि सामान्यमाश्रित्यैकत्वं बोध्यमिति ॥ सू० ३१ ॥ विज्ञनिरूपयति-- मूलम्—'एगा विन्नू ॥ सू० ३२॥ छाया--एको विज्ञः ॥ मू० ३२ ॥ व्याख्या-'एगा विन्नू' इति । विशेषेण जानातीति विज्ञः=ज्ञायक:-जिनागमगृहीतसार इत्यर्थः, स चैकः । मूलार्थ-मति एक है । ३१ । टीकार्थ-कथंचित्-किसी तरह से अर्थ का निर्णय हो जाने पर भी जो तद्गत सूक्ष्मधर्मों की पर्यालोचनरूप बुद्धि होती है उसका नाम मति है अलोचन भी इसी का एक नाम है यह एक है-एकत्व संख्याविशिष्ट है यह मति अवग्रहादिक के भेद से यद्यपि चार प्रकार की कही गई है फिर भी मतित्व सामान्य की अपेक्षा यह एक होती हुई कही गई है। मू०३१॥ विज्ञका निरूपण किया जाता है। 'एगा चिन्नु' इत्यादि ॥ ३२॥ मूलार्थ-विज्ञ एक है । ३२ । टीकार्थ-विशेषरूप से जानने वाले का नाम विज्ञ है इसका दूसरा नाम ज्ञायक भी है जिसने जिनागम से सार ग्रहण कर लिया है ऐसा सूत्राथ:--मति से छे. ॥ ३१ ॥ ટકાર્થ –કઈ પણ પ્રકારે અર્થને નિર્ણય થઈ ગયા બાદ પણ તેના સૂક્ષ્મ ધર્મોના પર્યાલચનરૂપ જે બુદ્ધિ હોય છે, તેને મતિ કહે છે. આલોચન પણ તેનું એક નામ છે જે કે અપગ્રેડ આદિના ભેદથી તેને ચાર પ્રકારની કહી છે, છતાં પણ મતિત્વ સામાન્યની અપેક્ષાએ તેમાં એકત્વ બતાવ્યું છે. સૂ૦૩૧ विज्ञनु नि३५-- "एगा विन्नू" या ॥ २ ॥ सूत्रार्थ---विज्ञ मे छे. ॥ ३२ ॥ ટીકાર્થ– વિશેષ જ્ઞાનસંપન્ન વ્યક્તિને વિજ્ઞ કહે છે. તેને જ્ઞાયક પણ કહે છે. જેણે જિનાગમને સાર ગ્રહણ કરી લીધું છે, એવે તે વિજ્ઞધ સામા શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર :૦૧
SR No.006309
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages710
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size42 MB
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