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समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ६ आर्द्रकमुनेगोंशालकस्य संवादनि० ६३३ को संभवो पिन्नागपिडियाए,
वाया वि एसा बुइया असच्चा ॥३२॥ छाया-पुरुष इति विज्ञसिनैव मस्ति, अनार्यः स पुरुषस्तथाहि ।
का संभवः पिण्याकपिण्ड्यां, वागप्येषोक्ताऽसत्या ॥३२॥ अन्वयार्थ:-(पुरिसैत्ति) पुरुष इति (विनत्ति) विज्ञति:-पिण्याकपिण्डे पुरुष इत्याकारिका बुद्धिः (न एवमस्थि) नैवं कथमपि पामराणामपि अस्ति (तहा से पुरिसे अणारिए) तथाहि स पुरुषोऽनार्यः, यः पिण्याकपिण्डे पुरुषबुद्धि करोति, (पिन्नागपिडियाए) पिण्याकपिण्ड्याम् (को संभवौ) पुरुषबुद्धेः कः सम्भव:- नास्ति सम्भावनेत्यर्थः (एसा वाया वि बुझ्या असच्या) एषा वागपि उक्ता असत्यैवेति ।
'पुरुसे त्ति चिन्नत्ति' इत्यादि ।।
शब्दार्थ--'पुरिसे त्ति-पुरुष इति' खलके पिंडमें पुरुष की 'चिन्नत्ति -विज्ञप्तिः' बुद्धि 'न एवमस्थि-नवमस्ति' मूों को भी नहीं हो सकती 'तहा से पुरिसे अणारिए-तथा स पुरुषः अनार्यः' अगर कोई पुरुष खलके पिण्डको पुरुष समझता है तो वह अनार्य है 'पिन्नाय पिण्डियाए-पिण्याकपिण्डे' खल के पिण्ड में पुरुषकी बुद्धि की संभावना ही को संभवो-कः संभवः' कैसे की जा सकती है, 'एसा वाया विबुइया असच्चा-एषा वागपि उक्ताऽसत्या' तुमारी कही हुई यह वाणी भी असत्य ही है ॥३२॥ ___ अन्वयार्थ खल के पिण्ड में पुरुष की बुद्धि तो मूखों को भी नहीं हो सकती है। अगर कोई पुरुष खल के पिण्ड को पुरुष समझता है या पुरुष को खलपिण्ड समझता है तो वह अनार्य है । भला खल
'पुरिसे त्ति विन्नत्ति' या
Avail:-'पुरिसे त्ति-पुरुष इति' पोजना 43i y३५५नी 'विन्नत्ति विज्ञप्तिः' मुद्धि तो 'न एवमत्थि-नैवमस्ति' भूमिाने ५५५ थ शती नथी. 'तहा से पुरिसे अणारिए-तथा सः पुरुषः अनार्यः' मथा भास पोजना
ने ५३५ सभो तो ते मनाय . 'पिनागपिडियाए-पिण्याकपिण्डे' मोनाभि ५३५५६॥ ना भुद्धिनी सलाना 'को संभवो-कः संभवः' वी शते शशाय 'एसा वायावि बुइया असच्चा-एषा वागपि उक्ताऽसत्या' તમેએ કહેલ આ વાણી પણ અસત્ય જ છે. ૩રા
અન્વયાર્થ–ળના પિંડમાં પુરૂષપણાની બુદ્ધિ તે મને પણ થઈ શકતી નથી. અથવા કોઈ પુરૂષ ખેળના પિંડને પુરૂષ સમજે અથવા પુરૂષને ખેળ પિંડ
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૪