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________________ ૧૪૮ सूत्रकृतागसूत्रे मूलम्-दीसंति समियायारा भिक्खुणो साहजीविणो। एए मिच्छोवजीवंति ईइ दिटिं न धारए ॥३१॥ छाया--दृश्यन्ते समिताचारा भिक्षवः साधुजीविनः । एते मिथ्योपजीवन्ति, इति दृष्टिं न धारयेत् __ अन्वयार्थः-(साहुजीविणो) साधुजीविनः (समियायाररा) समिताचारा:-संयमादिमन्तः (भिक्खु गो) भिक्षवा-निरवध भिक्षणशीलाः (दीसंति) दृश्यन्ते (एए. करने योग्य कहने से हिंसा का अनुमोदन होता है और अवध्य कहने से अपराध का अनुमोदन तथा राजकीय कानून का विरोध होता है। अतएव ऐसे प्रसंग पर साधु को मौन ही रहना चाहिए ॥३०॥ 'दीसंति समियाया।' इत्यादि शब्दार्थ-'साहुजीविणो-साधुजीविनः' निष्पाप जीवन व्यतीत करने वाले तथा 'समियायारा-समिताचाराः' यतना पूर्वक आचरण करनेवाले 'भिक्खुणो-भिक्षवः' निरवद्य भिक्षा ग्रहण करने वाले पुरुष 'दीसंति-दृश्यन्ते देखे जाते हैं 'एए मिच्छोवजीवंति-एते मिथ्योपजीवन्ति' वास्तव में ये मिथ्याचारी हैं अर्थात् कपट पूर्वक आजीविका करते हैं 'इइ दि िन धारए-इति दृष्टिं न धारयेत्' इस प्रकार की दृष्टि धारण करनी नहीं चाहिए ॥३१॥ अन्वयार्थ-निष्पाप जीवन व्यतीत करने वाले तथा यतनापूर्वक તે કેવળ દયાને માટે જ પ્રયત્ન કરતા રહેવું. અપરાધીને વધ કરવાને ગ્ય કહેવાથી હિંસાનું અનુમોદન થાય છે, અને અવધ્ય કહેવાથી અપરાધનું અનુમોદન અને રાજકીય કાયદાને વિરોધ થાય છે. તેથી જ આવા પ્રસંગે સાધુએ મૌન જ ધારણ કરવું જોઈએ. એજ ઉત્તમમાગે છે. ૦૩મા 'दीसंति समियायारा' याति शहाय-'साहुजीविणो-साधुजीविनः' निषि पा५ पर्नु न वाताव पास तथा 'समियायारा-समिताचाराः' यतना५४ आय ४२१॥ वाण. 'भिक्खुणो-भिक्षवः' निरक्ष वा पु३२. 'दीसंति-दृश्यन्ते' मां आवे छे. 'एए मिच्छोवजीवंति-एते मिथ्योपजीवन्ति' पाdas na तशी भिथ्यायारी छ, अर्थात् ४५ट पूर्व माल४ि ४३ छ, 'इइ दिदि न धारए-इति दृष्टि न धारयेत्' । प्रमाणे नीट पा२९ ४२वी नन. ॥३१॥ અન્વયાર્થ-નિપાપ જીવન વીતાવવાવાળા તથા યતના પૂર્વક આચરણ શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૪
SR No.006308
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages795
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size43 MB
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