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समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ५ आचारश्रुतनिरूपणम्
५३३ वा देव्यो वा सन्त्येवाऽयमेव श्रेयान् विचारः सर्वदा करणीयः । अनुमानाऽऽगमाभ्यां प्रमाणभूताभ्यामेतेषामस्तित्वसद्भावात् । २४॥ मूलम् -णस्थि सिद्धी असिद्धी वा, णेवं सन्न णिवेसए ।
अथिं सिद्धी असिद्धी वा, एवं सन्नं णिवेसए ॥२५॥ छाया-नास्ति सिद्धिरसिद्धि , नैव संज्ञां निवेशयेत् ।
___अस्ति सिद्धिसिद्धिा , एवं संज्ञां निवेशयेत् ॥२५॥ विचार करना चाहिए। प्रमाणभूत अनुमान और आगम से उन का अस्ति स्व सिद्ध है। कोई कोई पुण्यशाली जीव उन्हें स्वप्न में देखते भी हैं॥२४॥
'णत्थि सिद्धी असिद्धी वा' इत्यादि।
शब्दार्थ- 'सिद्धी णत्थि-नास्ति सिद्धिः सिद्धि-(समस्त कमों का क्षयरूप) नहीं है और 'असिद्धी चा-असिद्धी वा' असिद्धि भी महीं है 'णेवं सन्नं निवेसए-नैवं संज्ञां निवेशयेत्' ऐसा विचार करना योग्य नहीं है, किन्तु 'अस्थि सिद्धी असिद्धी वा-अस्ति सिद्धिरसिद्धि वी' सिद्धि है, और असिद्धि भी है 'एवं सन्नं निवेसए-एवं संज्ञां निवेशयेत' ऐसा विचार करना चाहिए ॥२५॥
अन्वयार्थ-सिद्धि (समस्त कर्मों का क्षयस्वरूप) नहीं है और असिद्धि भी नहीं है, ऐसा विचार करना योग्य नहीं है, किन्तु सिद्धि है और अमिद्धि भी है, ऐसा विचार करना चाहिए ॥२५॥ છે, પ્રમાણભૂત અનુમાન અને આગમથી તેઓનું અસ્તિત્વ સિદ્ધ થાય છે. કઈ કઈ પુણ્યશાળી જીવ તેને સ્વમમાં પણ દેખે છે. ૨૪
‘णत्थि सिद्धी असिद्धी वा' त्याह
शहाथ:--'सिद्धी णत्थि-नास्ति सिद्धिः' सिद्धी (सपणा ना क्षयना. ३५) नथी. भने 'असिद्धी -असिद्धि वा ममि प नथी. 'णेवं सन्न निवेसए-नैवं संज्ञां निवशयेत्' मा प्रभान विया२ ३२३॥ योग्य नथी. परंतु 'अस्थि सिद्धी असिद्धी वा-अस्ति सिद्धिरसिद्धि र्वा' सिद्धि छे. भने मसिद्धि पर छ, 'एवं सन्न निवेसए-एवं संज्ञां निवेशयेत्' २॥ प्रमाणे विया२ ४२३। नये. ॥२५॥
અન્વયાર્થ–-સિદ્ધિ (સમસ્ત કર્મોના ક્ષય રૂ૫) નથી અને અસિદ્ધિ પણ નથી, એ વિચાર કર ગ્ય નથી. પરંતુ સિદ્ધિ છે. અને અસિદ્ધિ પણ છે એ વિચાર કરે જોઈએ. રપા
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૪