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सूत्रकृतागसूत्रे मूलम्-पत्थि बंधे व मोक्खे का वं सन्नं णिसए ।
अस्थि बंधे व मोखे वा एवं सन्नं णिवेसए॥१५॥ छाया- नास्ति बन्धो वा मोक्षो वा नैवं संज्ञां निवेशयेत् ।
___ अस्ति बंधो वा मोक्षो वेत्येवं संज्ञां निवेशयेत् ॥१५॥ अन्वयार्थ:-(गस्थि बंधे व) नास्ति बन्धो वा-कर्मपुद्गलानां जीवेन सहसम्बन्धः (ण मोक्खे पा) न मोक्षो वा-मोक्षो बन्धनविश्लेषरूपः (णेवं सन्नं निवेसए) एवं चारित्र रूप आत्मपरिणाम अवश्य है तथा मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग रूप अधर्म का अस्तित्व भी अवश्य है। ऐसा समझना चाहिए । अर्थात् कुशास्त्रों के परिशीलन से उत्पन्न हुई कुमति को त्याग कर धर्म और अधर्म हैं, ऐसो शास्त्र जनित सद्बुद्धि को ही धारण करना चाहिए ॥१४॥ __ 'णस्थि बंधे व मोक्खे वा' इत्यादि।
शब्दार्थ-'मथि बंधे व-नास्ति बन्धो वा' बन्ध अर्थात् कर्मपुदलों का जीव के साथ सम्बन्ध नहीं है 'ण मोक्खो वा-न मोक्षो वा' और मोक्ष भी नहीं है 'णेवं सन्नं निवेस ए-नैवं संज्ञां निवेशयेत्' इस प्रकार की बुद्धि धारण न करे किन्तु 'अत्यि बंधे व मोक्खे वा-अस्ति बन्धो वा मोक्षो वा' बन्ध है और मोक्ष है 'एवं सन्नं निवेसए-एवं संज्ञां निवे. शयेत्' ऐसी बुद्धि धारण करे ॥गा० १५॥ ____ अन्वयार्थ--बन्ध अर्थात् कर्मपुद्गलों का जीव के साथ सम्बन्ध नहीं है और मोक्ष भी नहीं है, इस प्रकार की बुद्धि धारण न करे किन्तु बन्ध है और मोक्ष है ऐसी बुद्धि धारण करे ॥१५॥ શ્રત અને ચારિત્ર રૂપ આત્મપરિણામ અવશ્ય છે. તથા મિથ્યાત્વ, અવિરતિ, પ્રમાદ, કષાય, અને ગરૂપ અધર્મનું અસ્તિત્વ પણ અવશ્ય છે જ તેમ સમજવું જોઈએ. અર્થાત્ કુશાસ્ત્રોના પરિશિયનથી, ઉપન્ન થયેલી કુમતિને છેડીને ધર્મ અને અધર્મ છે, એવી શાસ્ત્રથી ઉત્પન્ન થવાવાળી સદ્દબુદ્ધિને જ ધારણ કરવી જોઈએ. ૧૪
'णस्थि बंधे व मोक्खे वा' त्यात
शहाथ'--'णत्थि बंधे व-नास्ति बंधो वा' ५५ अर्थात् ४ पुगतान १ साथैन। समय नथी. 'ण मोक्खो वो-न मोक्षो वा' अने मोक्ष ५ नथी. 'णेवं सन्नं निवेसए-नैवं संज्ञां निवेशयेत्' मावा प्रा२नी मुद्धिने घा२६ न रे. परंतु 'अस्थि बंधे व मोखे वा-अस्ति बन्धो वा मोक्षो वा' म छ, भने भाक्ष ५६॥ छ, 'एवं सन्नं निवेसए-एवं संज्ञां निवेशयेत्' के प्रभानी मुद्धिन पा२य ४२. ॥१५॥
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૪