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________________ समयार्थबोधिनी टीका द्वि. श्रु. अ. ५ आचारश्रुतनिरूपणम् ४४७ छाया--ये केचिरक्षुद्रका प्राणा अथवा सन्ति महालयाः। सदृशं तेषां वैरमिति असदृशमिति च नो वदेत् ६। अन्वयार्थ:--(जे केह) ये केचित् (खुड्डगा) क्षुद्रकाः-एकेन्द्रियाः अल्पशरीरवन्तो वा, (पाणा) पाणाः-पाणिनो जीवाः, (अदुवा) अथवा-ये केचित् (महालया) महालया:-विशिष्टदेहवन्तः पञ्चेन्द्रिया अश्वगजादयः सति' सन्ति-विद्यन्ते (तेसिं) तेषाम्-क्षुद्राणां महालयानां चा (सरिसं) सहशम्-समानमें रूपकमेव 'जे केइ खुड्डगा पाणा' इत्यादि । शब्दार्थ -'जे केह-ये केचित्' जो एकेन्द्रिय आदि 'खुड्डगा-क्षुद्रकाः' क्षुद लघुकायवाले 'पाणा-प्राणा' प्राणी है 'अदुवा-अथवा' अथवा जो कोई 'महालया-महालया' घोडा हाथी आदि महाकाय 'संति-सन्ति' पश्चेन्द्रिय प्राणी है 'तेसिं-तेषाम्' उन दोनों की हिंसा से 'सरिसं-सहशम्' समान ही वैर होता है । अथवा 'असरिसं-असद शम्' असमान वेर-बैरम्' वैर होता है 'त्ति-इति' ऐसा 'जो बए-नो वदेत्' नहीं कहना चाहिए अर्थात् लघुकाय और महाकाय प्राणिका घात करनेसे समान ही हिंसा होती है, ऐसा एकान्त कथन नहीं करना चाहिए और उनका घात करने पर असमान ही हिंसा होती है, ऐसा एकान्त वचन भी नहीं बोलना चाहिए ॥गा०६॥ ___अन्वयार्थ--जो एकेन्द्रिय आदि क्षुद लघुकायवाले प्राणी हैं अथवा जो कोई अश्यहाथी आदि महाकाय पंचंद्रिय प्राणी हैं, उन दोनों की 'जे केइ खुड्गा पाणा' या शहा–'जे केइ-ये केचित्' रे मन्द्रिय विगेरे 'खुड़गा-क्षुद्रकाः' क्षुद्र सघुया 'पाणा-प्राणाः' प्राणी छे, 'अदुवा-अथवा' अथपाने और 'महालया-महालया:' हाथी घडविणेरे महाय-मोटा शरीरवाणा 'संतिसन्ति' ५'यन्द्रिय प्राणी छे. 'तेसि-तेषाम्' त भन्नेनी हिंसाथी 'सरिसं-सह शम' समान १ ३२ थाय छ, अथवा 'असरिसं-असदृशम्' असमान वेरवेरम्' ३२ थाय छे 'त्ति-इति' से प्रमाणे 'णो वए-नो वदेत्' हे न જોઈએ. અર્થાત્ લઘુકાય અને મહાકાય (નાના મોટા) પ્રાણીને ઘાત કરવાથી સરખી જ હિંસા થાય છે. એ પ્રમાણે એકાન્ત કથન કરવું ન જોઈએ. અને તેને ઘાત કરવાથી અસમાન હિંસા જ થાય છે, એ પ્રમાણે એકાન્ત વચન પણ બેલવું ન જોઈએ. જગા ૦૬ અન્વયાર્થ-જે એકેન્દ્રિય વિગેરે ક્ષુદ્ર લઘુકાયવાળા પ્રાણી છે. અથવા જે ઘોડા હાથી વિગેરે મહાકાય પંચેન્દ્રિય પ્રાણી છે. એ બનેની હિંસાથી શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૪
SR No.006308
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages795
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size43 MB
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