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________________ ६६ सूत्रकृताङ्गसूत्रे गूलम्-नन्नत्थ अंतराएणं, परगेहे ण णिसीयए। गामकुमारियं किड्डे, नातिवेलं हंसे मुणी ॥२९॥ छाया-नान्यत्रान्तरायण, परगेहे न निषीदेत् । ग्रामकुमारिकां क्रीडां, नातिवेलं हसेन्मुनिः ॥२९॥ अन्वयार्थ:-(मुणी) मुनिः (नन्नत्य अंतराएणं) नान्यत्रान्तरायेण अन्तराय:शक्तेरभावः स च जरया रोगातङ्काभ्यां वा तथा च विनाऽन्तरायम् (परगेहे) परगृहे-गृहस्थगृहादौ (ण णिसीयए) न निषीदेत्-नोपविशेत् तथा-(गामकुमारियं गाथा का सार यह है-साधु न स्वयं कुशील बने और न कुशीलों के साथ संसर्ग करे । कुशीलों के संसर्ग से बहुत दोष उत्पन्न होते हैं, अतएव बुद्धिमान पुरुष को उसका परित्याग स्वतः करना चाहिए।१।२८। 'नमत्थ अंतराएणं इत्यादि। शब्दाथ-'मुणी-मुनिः' साधु 'नन्नत्थ अंतराएणं-नान्यत्रान्तरायेण' अन्तराय के (कारणके) बिना 'परगेहे-परगृहे' गृहस्थ के घर आदिमें 'ण णिसीयए-न निषीदेत्' न बैठे तथा 'गामकुमारियं किडु-ग्रामकुमारिकां क्रीडां गांव के बालकों की क्रीडा-हास्य विनोदादिक को न करे तथा 'नातिवेलं हसे-नातिवेलं हसेत्' मर्यादा रहित हास्य साधु न करे ॥२९॥ अन्वयार्थ--साधु अन्तराय के बिना अर्थात् यदि वृद्धावस्था अथवा ख्याधि के कारण शक्ति का अभाव न हो गया तो गृहस्थ के घर में न આ ગાથાને સારાંશ એ છે કે-સાધુએ સ્વયં કુશીલ બનવું નહીં તથા કુશીલ વાળાઓની સાથે તેને સંસર્ગ કરવું નહીં કુશીલના સંસર્ગથી ઘણા દે ઉત્પન્ન થાય છે. તેથી જ બુદ્ધિમાન પુરૂષે સ્વતઃ તેને પરિત્યાગ કરવું જોઈએ. ૨૮ 'नन्नत्थ अंतराएण' त्याल सन्हा---'मुणी-मुनिः' साधुझे 'नन्नत्थ अंतराएणं-नान्यत्रान्तरायेण' मतराय मिन 'परगेहे-परगृहे' स्थना १२ विगैरेभा 'ण णिसीयए-न निषीदेत' सनही तथा गामकुमारिय' किडं-ग्रामकुमारिकां क्रीडां' मना माण नी, मेट २५ दिन विगरे । ४२ 'नातिवेलं हसे-नातिवेलं हसेत्' साधु भा विनानु ३५ ४२७ नही ॥२६॥ અન્વયાર્થ–-સાધુએ અંતરાય શિવાય અથ-જે વૃદ્ધાવસ્થા અથવા વ્યાધિના કારણે શક્તિનો અભાવ ન થયે હોય તે ગૃહસ્થના ઘરમાં બેસવું श्री सूत्रतांग सूत्र : 3
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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