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________________ - समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १५ आदानीयस्वरूपनिरूपणम् ५५३ मूलम्-ण कुवई महावीरे अणुपुवकडं रेयं । रेयसा संमुंही भूया कम्मं हेच्चाण जं मयं ॥२३॥ छाया-न करोति महावीर आनुपूर्व्या कृतं रजः । रजसा संमुखी भूताः कर्म हित्वा यन्मतम् ॥२॥ अन्वयार्थः—(महावीरे) महावीर:-कर्मविदारणसमर्थों मुनिः (अणुपुवकडं) आनुपूर्वीकृतं-आनुपूर्या मिथ्यात्वाविरतिकषायममादायशुभयोगैः अनन्तभवतमा. 'ण कुवई महावीरे' इत्यादि । शब्दार्थ--'महावीरे-महावीरः' कर्म के विदारणमें शक्तिवाला मुनि 'अणुपुवकडं-आनुपूर्या कृतम्' दूसरे पागी जो क्रमसे मिथ्यात्व, अवि. रति, कषाय, प्रमाद आदि अशुभ योगोंसे अनन्त भव से प्राप्त संस्कार के क्रमसे लब्ध किया हुआ 'रयं-रजः' ज्ञानावरणीयादि कर्मरज अथवा पापकर्म 'ण कुव्वई-ल करोति' नहीं करता है कारण की 'रयसारजसा' पूर्वभवसे उपार्जित कर्म से ही पाप होता है अतः 'कम्म-कर्म' पापकर्म अथवा उसके कारणको 'हेच्चाण-त्यक्वा' त्याग करके 'ज-यत्' जो 'मयं-मतं' तीर्थ कर आदि महापुरुषों के सम्मत और मोक्षके उपाय रूप तपः संयमादिरूप के 'संमुहीभूया-संमुखी भूताः' सन्मुख होते हैं अर्थात् मोक्षप्राप्ति के योग्य आचरण में ही तत्पर रहते हैं ॥२३॥ अन्वयार्थ-महावीर अर्थात् कर्म विदारण करने में समर्थ मुनि मिथ्यात्व, अविरति प्रमाद, कषाय एवं अशुभ योग के द्वारा अनन्त ‘ण कुव्वई महावीरे' त्याह शva --'महावीरे-महावीरः' भनी विहारमा शतिवाणे भनि 'अणुपुव्वकडं-आनुपूर्व्या कृतम्' मीन ए मथी भिथ्यात्व, भवि२ति, उपाय, પ્રમાદ, વિગેરે અશુભ યોગથી અનન્ત ભવથી પ્રાપ્ત કરેલા સંસ્કારના ક્રમથી प्रात ४२। 'रयं-रजः' ज्ञानावरणीय विगेरे में २०४ अथवा पा५४में 'ण कुब्वइ-न करोति' ४२ता नथी. २९ है 'रयसा-रजसा' पूलमा ४२। भथी ४ ५५ थाय छे. तेथी 'कम्म-कम' या५४ अथवा तना ॥२१ने 'हेच्चाण-त्यक्त्वा' त्या शने 'ज-यत्' २ 'मयं-मतम्' तीर्थ ७२ विगेरे महाधुषाने सम्मत भने मोक्षन पाय ३५ त५: सयमाहिना 'संमुहीभूया संमुखी भताः' सन्भुभ थाय छे. अथात् भाक्ष प्राप्ति योग्य मायशुमार તત્પર રહે છે. ૨૩ અન્વયાર્થ–મહાવીર અર્થાત્ કર્મનું વિદારણ કરવામાં સમર્થ મુનિ મિથ્યાત્વ, અવિરતિ, પ્રમાદ કષાય, અને અશુભ ચાગ દ્વારા અનંત ભના શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૩
SR No.006307
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages596
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size33 MB
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